IT सेल की कहानी और कार्यप्रणाली
अमित नाम का एक युवा वेल एजुकेटेड & in इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और पब्लिक रिसर्च में माहिर लड़का अपनी कुछ लोगों की एक रिसर्च टीम के साथ तत्कालीन पार्टी के एक नेता, जो कोर्ट से Tadipaar है जेल गामी, अधेड़ है से मिलता है संयोग से उनका नाम भी अमित ही होता है,
हालांकि इसके पहले वह पार्टी कई और नेताओं से मिला होता है लेकिन उन लोगो को उसकी बात समझ में नही आती है ना भाव देते हैं
घटना वर्ष 2012 गुजरात विधानसभा का आम चुनाव नजदीक था लेकिन यह भी तय था कि इस चुनाव में तत्कालीन सत्तारूढ़ दल हार रही है,जबकि सरकार ने खूब काम किया हुआ था विकास के, हालांकी उसके पुर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री दो चुनाव पुर्ण बहुमत से जीत चुके थे जिसमें की एक दंगे की सिंमपैथी व वोट पोलरिजेसन के कारण जीत चुके थे दूसरा जो अपने विकास कार्यों के से जीत चुके थे,
#15सालों से यह पार्टी राज्य मे सत्तारूढ थी जिससे एंटी इनकंबेंसी भी काम कर रही थी, साथ ही विपक्ष के एक धाकड़ मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार जो पांचवी बार मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे उनके लिए सिंपैथी चल रही थी कि इस बंदे को भी एक बार अवसर देना ही चाहिए, साथ ही केंद्र में विपक्ष की सत्तारूढ़ सरकार ने अपने सारे रिसोर्सेज लगा दिए थे इस चुनाव को जीतने के लिए, तत्कालीन राज्य की रूलिंग पार्टी चारों तरफ से घिरी हुई थी
सत्तारूढ़ पार्टी की संगठन की अंदरूनी रिपोर्ट और सरकारी एजेंसियां भी यही कह रही थी कि यह चुनाव हम हार रहे हैं,
#तभी अमित नाम का वह युवा लड़का, जिसे अमित नाम के Tadipaar नेता ले आये थे अपनी योजना समझाता है तत्कालीन संगठन पदाधिकारी व मुख्यमंत्री को, और सफल रहता है
#हारे को हरिनाम तो तत्कालीन CM और पार्टी के अन्य पदाधिकारिय उसकी बात मान लेते हैं
अमित नाम का लड़का अपनी टीम लेकर के बैठ जाता है, गुजरात के हर विधानसभा क्षेत्र का पर्सनल लेवल पर विश्लेषण कर और डेटा इकट्ठा किया जाता है,
और यहीं से चुनाव के नियम बदल जाते हैं साथ ही दोनों अमितो की किस्मत भी।भाषण, चुनावी नारे, क्या वायरल करना है हर चीज व पब्लिक डोमेन में क्या नेरेटिव सेट करना है साथ ही उम्मीदवारों की छवि का निर्माण भी।
मैं बस सिर्फ 2 पॉइंट का उल्लेख करूंगा जिसकी वजह से वे चुनाव जीत जाते रहे हैं, क्योंकि सारे पॉइंट्स लिखने में एक मोटी पुस्तक ही तैयार होगी
ट्रिक & फार्मूला -
हर विधानसभा से 4 या 5 उम्मीदवारों की लिस्ट बनाई जाए, चारों उम्मीदवारों की रेटिंग अलग-अलग लोगों से बनाई हो जिसमें कि पहले संगठन कि लेवल पर उम्मीदवार का नामीनेसन और दूसरे में एक स्वतंत्र एजेंसी का हो तीसरे में संगठन का दूसरा उप संगठन हिस्सा जैसे कि छात्र सभा, मजदूर सभा, किसान सभा के द्वारा नामित उम्मीदवार हो।
लेकिन उम्मीदवार के पास कम से कम उसके विधानसभा में उसके 10000 समर्थक वोट होने ही चाहिए, इस बात का कोई मतलब नहीं होगा कि वह अपने दल का है या विरोधी दल का है या किसी पार्टी से आया हुआ है।
आब सभी उम्मीदवारों का पार्टी अध्यक्ष और अन्य लोगों द्वारा इंटरव्यू लिया जाएगा
#डिफरेंट थिंग यह है कि कथित जाति बहुल विधानसभा क्षेत्र से उस जाति के उम्मीदवार को नहीं उतारा जाएगा,
#इंटरव्यू का आखरी क्वेश्चन उम्मीदवार से कि आप कितने पैसा खर्च कर सकते हो अपने विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए, जो सबसे ज्यादा बोली लगाए कि मैं इतना खर्च करूंगा____और लगभग 80% इन्हीं दोनों आधार पर टिकट बांटे गए,
अब यही से भारतीय चुनाव लड़ने में एक क्रांतिकारी परिवर्तन होता है जैसे कि चुनाव न हो एक गेम है और उसे बाकी सभी उम्मीदवार खिलाड़ी हैं
#हारजीत को भी खेल के जैसे ही लेना है और चुनाव लड़ना भी खेल खेलने के जैसे करना है, IT सेल द्वारा कार्यकर्ताओं के हैवी टारगेट दिए जाते थे जैसे कि इतनी सीटें निकालना है इतने गांव में मोहल्लों में मीटिंग करनी है इतने लोगों से मिलना है
#उम्मीदवार के पैसे के तीन हिस्से होते हैं एक IT सेल के पास एक, दूसरा हिस्सा जिला संगठन के पास और तीसरा हिस्सा पार्टी उम्मीदवार खुद खर्च करेगा,
अब IT सेल यह डिसाइड करेगा कि किस उम्मीदवार को अपने विधानसभा किस क्षेत्र में किस गांव में किस जाति के पास जाकर की क्या बोलना है,
अपने पक्ष के स्टार नेताओं के भाषणों का निर्देश भी IT सेल द्वारा ही किया गया
विपक्षी नेता क्या बोल रहे हैं उनके हर भाषण के एक-एक पॉइंट का विश्लेषण किया गया, और उसमें से वीक पॉइंट निकाला गया
जैसे एक था मौत का सौदागर, शैतान, दुष्ट,
अब IT सेल वालों ने इस पर पलटी मारी है और तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा यह कहा जाने लगा कि यह पांच करोड गुजरातियों का अपमान है, मामला ही से पलट जाता है,
#जैसा कि आप लोगों को याद होगा 2014 में विपक्ष के नेता द्वारा नीच राजनीति करने वाला कहा गया,
IT सेल वालों ने भाषण निर्देशन को चेंज किया और यह कहा कि आप यह कहिए कि मुझे नीच कहा गया क्योकि मैं नीच जात का हूं इसलिए,
#खैर 2012 के चुनाव में आप लोगों को याद होगा जैसे कि तत्कालीन प्रदेश नेतृत्व में अपने सौ से अधिक सिटिंग विधायकों मने कि लगभग सत्तर परसेंट सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया था, लेकिन जब परिणाम आया तो यह अब तक की सबसे बड़ी जीत हुई थी
#दूसरी घटना तब होती है जब वर्ष 2014 में भारत के जनरल इलेक्शन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं गुजरात के मुख्यमंत्री की लोकप्रियता अपने चरम पर थी किंतु चुनाव पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन बाबू के नेतृत्व में लड़ा जाने वाला था अतः यह भी तय था कि प्रधानमंत्री भी वही बनेंगे, लेकिन कहते हैं ना बिल्ली के भाग से छींका टूटना और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम एक पूर्त नामक एक घोटाले मे उछाला जाने लगा, सो संगठन के दबाव में मजबूरन तत्कालीन अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ा और उनके जगह पर एक अन्य पुराने धुरंधर को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन इसी शर्त पर कि वह प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा नए अध्यक्ष इस बात को मान भी जाते हैं और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पेश कर देते हैं
#फिर दोनों अमित की जुगल जोड़ी तैयार हो जाती है कि यह राष्ट्रीय चुनाव जीतना ही है लेकिन IT सेल वाले अमित ने अपनी कुछ मजबूरियां बताई कि जैसे उनके पास टीम बहुत छोटी है इतने बड़े देश की राष्ट्रीय चुनाव के लिए कैपेबल नहीं है और इतने कम समय में इतनी बड़ी टीम तैयार करना भी मुश्किल काम था सो किसी प्रोफेशनल को हायर किया जाए जिसके पास एक एक बड़ी टीम हो किंतु दिशा निर्देशन हम ही करेंगे
इस काम के लिए प्रशांत कुमार नाम के एक डाटा एनालिसिस टीम को हायर किया, सहायता ली गई
और फिर 2014 में जो हुआ वह इतिहास है, लेकिन प्रशांत कुमार को उसके बाद कोई पूछने के लिए तक नही आया।
यह एक हाइपोथेटीकल स्टोरी है इसका किसी से कोई लेना देना नहीं है
अमित नाम का एक युवा वेल एजुकेटेड & in इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और पब्लिक रिसर्च में माहिर लड़का अपनी कुछ लोगों की एक रिसर्च टीम के साथ तत्कालीन पार्टी के एक नेता, जो कोर्ट से Tadipaar है जेल गामी, अधेड़ है से मिलता है संयोग से उनका नाम भी अमित ही होता है,
हालांकि इसके पहले वह पार्टी कई और नेताओं से मिला होता है लेकिन उन लोगो को उसकी बात समझ में नही आती है ना भाव देते हैं
घटना वर्ष 2012 गुजरात विधानसभा का आम चुनाव नजदीक था लेकिन यह भी तय था कि इस चुनाव में तत्कालीन सत्तारूढ़ दल हार रही है,जबकि सरकार ने खूब काम किया हुआ था विकास के, हालांकी उसके पुर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री दो चुनाव पुर्ण बहुमत से जीत चुके थे जिसमें की एक दंगे की सिंमपैथी व वोट पोलरिजेसन के कारण जीत चुके थे दूसरा जो अपने विकास कार्यों के से जीत चुके थे,
#15सालों से यह पार्टी राज्य मे सत्तारूढ थी जिससे एंटी इनकंबेंसी भी काम कर रही थी, साथ ही विपक्ष के एक धाकड़ मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार जो पांचवी बार मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे उनके लिए सिंपैथी चल रही थी कि इस बंदे को भी एक बार अवसर देना ही चाहिए, साथ ही केंद्र में विपक्ष की सत्तारूढ़ सरकार ने अपने सारे रिसोर्सेज लगा दिए थे इस चुनाव को जीतने के लिए, तत्कालीन राज्य की रूलिंग पार्टी चारों तरफ से घिरी हुई थी
सत्तारूढ़ पार्टी की संगठन की अंदरूनी रिपोर्ट और सरकारी एजेंसियां भी यही कह रही थी कि यह चुनाव हम हार रहे हैं,
#तभी अमित नाम का वह युवा लड़का, जिसे अमित नाम के Tadipaar नेता ले आये थे अपनी योजना समझाता है तत्कालीन संगठन पदाधिकारी व मुख्यमंत्री को, और सफल रहता है
#हारे को हरिनाम तो तत्कालीन CM और पार्टी के अन्य पदाधिकारिय उसकी बात मान लेते हैं
अमित नाम का लड़का अपनी टीम लेकर के बैठ जाता है, गुजरात के हर विधानसभा क्षेत्र का पर्सनल लेवल पर विश्लेषण कर और डेटा इकट्ठा किया जाता है,
और यहीं से चुनाव के नियम बदल जाते हैं साथ ही दोनों अमितो की किस्मत भी।भाषण, चुनावी नारे, क्या वायरल करना है हर चीज व पब्लिक डोमेन में क्या नेरेटिव सेट करना है साथ ही उम्मीदवारों की छवि का निर्माण भी।
मैं बस सिर्फ 2 पॉइंट का उल्लेख करूंगा जिसकी वजह से वे चुनाव जीत जाते रहे हैं, क्योंकि सारे पॉइंट्स लिखने में एक मोटी पुस्तक ही तैयार होगी
ट्रिक & फार्मूला -
हर विधानसभा से 4 या 5 उम्मीदवारों की लिस्ट बनाई जाए, चारों उम्मीदवारों की रेटिंग अलग-अलग लोगों से बनाई हो जिसमें कि पहले संगठन कि लेवल पर उम्मीदवार का नामीनेसन और दूसरे में एक स्वतंत्र एजेंसी का हो तीसरे में संगठन का दूसरा उप संगठन हिस्सा जैसे कि छात्र सभा, मजदूर सभा, किसान सभा के द्वारा नामित उम्मीदवार हो।
लेकिन उम्मीदवार के पास कम से कम उसके विधानसभा में उसके 10000 समर्थक वोट होने ही चाहिए, इस बात का कोई मतलब नहीं होगा कि वह अपने दल का है या विरोधी दल का है या किसी पार्टी से आया हुआ है।
आब सभी उम्मीदवारों का पार्टी अध्यक्ष और अन्य लोगों द्वारा इंटरव्यू लिया जाएगा
#डिफरेंट थिंग यह है कि कथित जाति बहुल विधानसभा क्षेत्र से उस जाति के उम्मीदवार को नहीं उतारा जाएगा,
#इंटरव्यू का आखरी क्वेश्चन उम्मीदवार से कि आप कितने पैसा खर्च कर सकते हो अपने विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए, जो सबसे ज्यादा बोली लगाए कि मैं इतना खर्च करूंगा____और लगभग 80% इन्हीं दोनों आधार पर टिकट बांटे गए,
अब यही से भारतीय चुनाव लड़ने में एक क्रांतिकारी परिवर्तन होता है जैसे कि चुनाव न हो एक गेम है और उसे बाकी सभी उम्मीदवार खिलाड़ी हैं
#हारजीत को भी खेल के जैसे ही लेना है और चुनाव लड़ना भी खेल खेलने के जैसे करना है, IT सेल द्वारा कार्यकर्ताओं के हैवी टारगेट दिए जाते थे जैसे कि इतनी सीटें निकालना है इतने गांव में मोहल्लों में मीटिंग करनी है इतने लोगों से मिलना है
#उम्मीदवार के पैसे के तीन हिस्से होते हैं एक IT सेल के पास एक, दूसरा हिस्सा जिला संगठन के पास और तीसरा हिस्सा पार्टी उम्मीदवार खुद खर्च करेगा,
अब IT सेल यह डिसाइड करेगा कि किस उम्मीदवार को अपने विधानसभा किस क्षेत्र में किस गांव में किस जाति के पास जाकर की क्या बोलना है,
अपने पक्ष के स्टार नेताओं के भाषणों का निर्देश भी IT सेल द्वारा ही किया गया
विपक्षी नेता क्या बोल रहे हैं उनके हर भाषण के एक-एक पॉइंट का विश्लेषण किया गया, और उसमें से वीक पॉइंट निकाला गया
जैसे एक था मौत का सौदागर, शैतान, दुष्ट,
अब IT सेल वालों ने इस पर पलटी मारी है और तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा यह कहा जाने लगा कि यह पांच करोड गुजरातियों का अपमान है, मामला ही से पलट जाता है,
#जैसा कि आप लोगों को याद होगा 2014 में विपक्ष के नेता द्वारा नीच राजनीति करने वाला कहा गया,
IT सेल वालों ने भाषण निर्देशन को चेंज किया और यह कहा कि आप यह कहिए कि मुझे नीच कहा गया क्योकि मैं नीच जात का हूं इसलिए,
#खैर 2012 के चुनाव में आप लोगों को याद होगा जैसे कि तत्कालीन प्रदेश नेतृत्व में अपने सौ से अधिक सिटिंग विधायकों मने कि लगभग सत्तर परसेंट सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया था, लेकिन जब परिणाम आया तो यह अब तक की सबसे बड़ी जीत हुई थी
#दूसरी घटना तब होती है जब वर्ष 2014 में भारत के जनरल इलेक्शन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं गुजरात के मुख्यमंत्री की लोकप्रियता अपने चरम पर थी किंतु चुनाव पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन बाबू के नेतृत्व में लड़ा जाने वाला था अतः यह भी तय था कि प्रधानमंत्री भी वही बनेंगे, लेकिन कहते हैं ना बिल्ली के भाग से छींका टूटना और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम एक पूर्त नामक एक घोटाले मे उछाला जाने लगा, सो संगठन के दबाव में मजबूरन तत्कालीन अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ा और उनके जगह पर एक अन्य पुराने धुरंधर को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन इसी शर्त पर कि वह प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा नए अध्यक्ष इस बात को मान भी जाते हैं और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पेश कर देते हैं
#फिर दोनों अमित की जुगल जोड़ी तैयार हो जाती है कि यह राष्ट्रीय चुनाव जीतना ही है लेकिन IT सेल वाले अमित ने अपनी कुछ मजबूरियां बताई कि जैसे उनके पास टीम बहुत छोटी है इतने बड़े देश की राष्ट्रीय चुनाव के लिए कैपेबल नहीं है और इतने कम समय में इतनी बड़ी टीम तैयार करना भी मुश्किल काम था सो किसी प्रोफेशनल को हायर किया जाए जिसके पास एक एक बड़ी टीम हो किंतु दिशा निर्देशन हम ही करेंगे
इस काम के लिए प्रशांत कुमार नाम के एक डाटा एनालिसिस टीम को हायर किया, सहायता ली गई
और फिर 2014 में जो हुआ वह इतिहास है, लेकिन प्रशांत कुमार को उसके बाद कोई पूछने के लिए तक नही आया।
यह एक हाइपोथेटीकल स्टोरी है इसका किसी से कोई लेना देना नहीं है
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