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रविवार, 31 जनवरी 2016

योरोपियन यूनियन के देश क्रूशेड धार्मिक युद्ध गृह युद्ध की कगार पे

हनीफ कुरैशी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार है लिखते है कि; “जब गरिल्ला युद्ध आरम्भ होगा तब अन्त में योरोपिय श्वेतो (ईसाईयो) द्वारा अश्वेतों और एशिया मूल के लोगों को गैस चैम्बर में डाल दिया जायेगा।”

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात यूरोपीय साम्राज्यवाद के विध्वंस के पश्चात तमाम नवोदित राष्ट्र अस्तित्व में आते गए, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों ने गुलामी को समाप्त कर एक नये युग का आरम्भ किया। साम्राज्यवादी राष्ट्रों की पकड़ से ये राष्ट्र दूर होने लगे और एक नए ग्रुप या स्वतंत्र राष्ट्रों का गुट औपनिवेशिक मुक्ति के पश्चात् नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने गुटीय राजनीति को छोड़कर अपनी स्वतंत्र पहचान कायम की मतलब दो गुट में बंटे विश्व से अपने को अलग रखा और इसी कारण यूरोपियनों द्वारा नवोदित राष्ट्रों को 'तृतीय विश्व' थर्ड वर्ड भी कहा जाता है ।

जर्मनी को छोड़ लगभग सारे योरोपीय देश अपने साम्राज्यवादी युग के दिनों को भूले नहीं है सो वे हर हाल में 'तृतीय विश्व' थर्ड वर्ड के देशों पर अपनी पकड़ बनाये रखना चाहते है, सो थर्ड वर्ड के देशो के लोगों को जो की वहां की शासन व्यवस्था या सरकारों से नाराज है या नाराज नहीं है तो लोगो को नाराज करवाया जाये फिर उन कुपित लोगो को आव्रजन दिया जाता है इसमें सन्देश ये होता है की थर्ड वर्ल्ड के देशो तुमलोगो में आज भी देश का शासन करने क्षमता नहीं है तुम्हारी जनता में सही नेतृत्व चुनने की क्षमता नहीं है, लेकिन किसी भी देश को आव्रजन देने के लिए खुद को सेकुलर बनना या दिखाना पड़ता है वैसे पहले रोमन सम्राट Constantine का साम्राज्य में धर्म के लिए सहिष्णुता फैसला सुनाया , जिसमें 313 में मिलान के फतवे की घोषणा में एक है और इसी सेकुलर मुखौटे का इस्तेमाल योरोपियन मुल्कों द्वारा किया जाता है
लेकिन योरोपियन देश मूलतः संसार भर के क्रिश्चियन विकसित देश, अमूमन सेकुलर नहीं होते केवल सेकुलर दिखावा करते है सो उसी दिखावे के मारे ज्यादातर गैर ईसाइयो जिसमे की क्रूड ऑयल देश के निवासी समुदाय के ज्यादा है के लोगों को किसी प्रकार की शरण मांगने पर प्रवासी के रूप में स्वीकार कर लेते है और आव्रजन दे देते है और इन अन्य धर्मो के लोगो को उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होने पे ही आने देते है जिसमे ज्यादातर तेल मने पेट्रोलियम क्रूड ऑयल देश के निवासी होते है और आव्रजन देने का मुख्य कारन होता है की उनको अपने  चर्च में विश्वास की इन अन्य धर्मो की मान्यता वालो को हमारे चर्च तुरत फुरत में क्रिश्चियन बना देंगे और प्रथमतः वे प्रवासी क्रिश्चियन हो भी जाते है लेकिन शादियां करने या नागरिकता मिलने के बाद फिर अति आधुनिकता विकसित देशो के विकसित नागरिको के उन्नमुक्त जीवन शैली विशेषकर महिलाओं की स्वतंत्रता व उन्नमुक्त जीवनशैली के प्रति संवेदनशील होने के कारन कन्वेर्टेड लोग पुनः फिर अपने पुराने धर्म व् मान्यताओं को स्वीकार करलेते है


उदाहरण सामने है-अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद कनाडा में आतंकवादी परिवार खद्र बूड की माँ अफगानिस्तान पाकिस्तान से कनाडा में अपने बेटे के साथ राजनितिक शरण प्राप्त करती है लेकिन कनाडा  में शरण लेने के बाद कैनेडियन समाज के रहन सहन आधुनिकता उसे रास नहीं आई और कहा कि अल कायदा संचालित प्रशिक्षण शिविर उसके बच्चों के लिये सर्वाधिक उपयुक्त जगह थी,

इंटरनेट का युग है हर तरह की जानकारियां साहित्य दुनियां के कोने कोने में उपलब्ध है योरोपियन धार्मिक साहित्य में बहुत से प्रश्न अनुत्तरित है जैसे की मशिह के मृत्यु दंड के बाद क्रृस पे लटकने के बाद भी जीवित होते है लेकिन जीवित होने के बाद के बीसियो वर्षो की बातें धार्मिक साहित्य या कोई इतिहासकार स्पष्टतः नहीं बताता की मसीही येसु कहाँ गए या कहाँ थे, १६०१ के कैलेंडर के पूर्व में २५ दिसंबर कोई त्यौहार क्यों नहीं था उसके बाद कैसे जन्मोत्सव हो गयाI ऐसे ही अनुत्तरित प्रश्नो व् अति आधुनिकतावाद धर्म की भ्रांतियों के कारन योरोपियन देश व् उनकी युवा पीढ़िया धीरे धीरे नास्तिकता के ओर बढ़ रही है योरोपियन का अध्यात्म का स्तर ऐसा नहीं है की वे जबाब दे पाये जैसे भारतीय सनातन आध्यात्म वैज्ञानिकता और तर्क पर सभी उत्तर देता है वैसे योरोपियन लोगों के झुकाव भारतीय सनातन के वैदिक अध्यात्म शांति कदाचित ज्यादा बढ़ा है
लेकिन योरोपियन के उपासना स्थल खाली रहने लगे है वही प्रवासियों की संख्या बढ़ते जाने से प्रवासियों के उपासना स्थलों में भीड़ बढ़ती जारही है गौर करने वाली बात यह है की केवल जर्मनी में ही अकेले पिछले एक से डेढ़ सालों में ही लगभग ग्यारह लाख शरण लेने आये और शरणार्थी कैम्पों में रह रहे है जो की मुख्या रूप से मध्य एशियाई देशो से है जिनमे से ज्यादातर गृह युद्ध झेलने वाले देशो के लोग है इस प्रकार पुरे योरोपीय यूनियन देशो के बारेमे अनुमान लगाया जासकता हैI 

योरोपियन बुद्धिजीवी भी मानते है की यूरोप एक खुला द्वार के तरह हो गया है जिसमें अरब प्रायद्वीप के लोग टहल रहे हैं। सो योरोपियन के पास विकल्प बस यही की मध्य एशियाई प्रवासियों की अवहेलना तिरस्कार करें या फिर उनके लिये योरोपि द्वार बन्द कर दिये जायें।
योरोप जगत के बुद्धिजीवी भी बेहद परेशान है उनका मानना है की यूरोपी सरकारों व् सेकुलर नेताओं के कारन मध्य एशियाई लोगो की सक्रियता और यूरोप की निष्क्रियता के कारण यूरोप का इस्लामीकरण होगा और अपने धीमे स्तर के साथ यूरोप इस्लाम में धर्मान्तरित हो जायेगा। कारन योरोपियन मान्यताए है जिसमे स्वयं के उच्च और उनके निम्न धार्मिकता, स्वयं के उच्च और उनके निम्न सास्कृतिक विश्वास के महल के अस्पष्ट आधार के टूटने तथा प्रवासियों के उच्च और योरोपियन के निम्न जन्म दर के कारण यह सम्भव होगा। इन सब परिस्थितियों का आंकलन करते हुए विद्वान ओरियाना पॉलसी कहते है - जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा वैसे-वैसे यूरोप मुस्लिम समाज का उपनिवेश बनता जायेगा।

योरोपियन नीति नियंताओं ने थर्ड वर्ड के देशों पर पिछले दरवाजे से नियंत्रण करने की जो नीति बनायीं थी पिछले दस एक सालों से गलत व् विपरीत परिणाम दे रही है उसके भवर में आज वे और उनकी जनता बुरी तरह फंस चुके है वे आपने आपको अपने ही देश में शत्रुओं से घिरा हुआ मासूस करने लगे है जो की सर्वथा योरोपियन नीति निर्माताओं व् विदेशी मामलो के विशेषज्ञों के अनुमानों के विपरीत घटित हो रहा है यूरोपियनों के धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक आधार पे भयंकर चोट पहुंची है कदाचित राजनितिक आधार पर भीI यूरोपियनों की सामाजिक संरचना छिन्न भिन्न होने के कगार पर है उनके पास कोई उक्ति नहीं है की किस प्रकार योरोप को बचाया जायेI यह स्थापित सत्य है प्रवासी या कोई भी हो जन्मस्थान वाली भूमि या देश से प्रेम एवं निष्ठां सदैव अधिक होती हैI अमेरिका के विचारक राफ पीटर्स क्रूसेड आदि युद्धों के ओर इशारा करते हुए मध्य एशियाई प्रवासियों को चेतावनी देते हुए कहते है की - “यूरोप में मध्य एशियाई लोग उधार का समय व्यतीत कर रहे हैं और बच्चों के माध्यम से यूरोप पर नियन्त्रण की बात करना यूरोप के खतरनाक इतिहास की अवहेलना करना है ”।
खैर राफ पीटर्स जैसे विद्वानो की बातें चेतावनी तो धमकी जैसे हुई लेकिन इससे किसी भी देश के नागरिको को सामाजिक धार्मिक तौर पे जगाय नहीं जा सकताI योरोपियन की नीति आजकल यह हो गयी है की वे भारतीयों का उदहारण दे रहे है जिसमे की वर्तमान भारतीय नेता व् प्रधानमंत्री का काफी प्रचार किया जारहा है जिसमे यह प्रदर्शित करना मुख्य है की वे सनातन धार्मिक मान्यताओं पर अडिग रहने वाले व्यक्ति है उनके धार्मिक मान्यताओ के लोगो को हानि पहुचने वालो वाले लोगो की कथित तौर पर व्यापक नरसंहार कराने का प्रचार किया जाता है पश्चिमी मिडिया भी किसीभी समय और ज्यादातर किसी योरोपीय देशो के दौरे के समय प्रधानमंत्री को ज्यादा से ज्यादा फुटेज देती है जिसमे की छुपा हुआ सन्देश ये होता है की हजारों वर्षो के गुलामी के बाद देखो भारतीय लोगों ने एक संतों जैसे सनातनी मान्यता वाले को आपने नेता चुन लिया है योरोपियन भारतियों के उदाहरण दे कर अपने नागरिको को प्रेरित कर रहे है भारतीय नहीं बदले है तुम भी न बदलो अपनी धार्मिक आस्थामे विश्वास रखोI
लेकिन योरोप अब बहुत दूर निकल चूका है योरोपियन देशो के सेकुलरिज्म के मुखौटे ने तथा दुषरे देशो के मामलों में बेजा दखलंदाजी करने का परिणाम उन्हें व् उनके नागरिको को किसी हद तक तो भुगतना ही होगाI