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मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

अग्निबाण विशेषज्ञ रानी अब्बाक्का भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

अग्निबाण विशेषज्ञ मंगलोर की रानी महादेवी अब्बाक्का 

संसार भर में योद्धा स्त्री  का प्रत्यक्ष. युद्ध में भाग लेने के उदाहरण केवल भारतीय जनमानस में व  इतिहास मे ही मिलता है साथ ही बहुत सी ऐसी विरागनाएं जिनके बारे में इतिहासकारों ने कुछ एक पन्ने भी लिखने से रह गये।

इन्हीं मे से एक दक्षिण भारत में महादेवी अब्बाक्का रानी चउता जो सोलवीं सदी मे कर्नाटक के कोस्टल एरीया मंगलोर के तुलुनाद उलाल राज्य की शासिका थी, यह राज्य मशालों सूखे मेवे फलों व अनाज के हिन्द महासागर में व अरब प्रायद्वीप से व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।

महादेवी के साथ इनकी माँ व बहन ने कुल छः बार पुर्तगालीयों से युद्ध किया और सभी में विजयी भी रहे। ये वही छ युद्धों की श्रृंखला जिसमें पुर्तगालीयों को संरक्षण आश्रय देने वाले राजा जमोरीन रानी की सहायतार्थ पुर्तगालीयों के विरुद्ध युद्ध लडते हुए मारे गये थे।

महादेवी जैन मतावलंबी थी लेकिन वह परम शिव भक्त थी एक निपुण धनुर्धर, तलवार बाजी व घुडसावारी मे सिद्धहस्त योग्य सैनिक के साथ ही एक न्यायीक शासन संचालन में प्रसिद्ध थी वह रातों मे सुदूर तक राज्य का भ्रमण कर जनता के सुख दुख समस्याओं की जानकारी रखती थी अतः वह बहुत ही जन प्रिय रही।

महादेवी का विवाह पड़ोसी राजा बंगहर से हुआ था किन्तु महादेवी ने कुछ समय बाद राजा से प्राप्त समस्त उपहारों को लौटकर विवाह तोड आपने राज्य की जनता के सेवा के लिए लौट आयी। और राजा ने इसे अपमान माना और इस अपमान का बदला लेने के लिए पुर्तगालीयों से हाथ मिला लिया।

यह वही समय था जब पुर्तगालीयों ने 1520 में गोवा विजय के बाद दक्षिण के पूरे तटीय एरीया को कब्जा करने मे लगे थे।

पुर्तगालीयों के तमिलनाडु के कोस्टल एरीया से स्पीसीज, ड्राई फ्रुट, अनाज बाकी की दुनिया में बेरोकटोक सप्लाई व व्यापार के लिए मंगलोर उलाल पोर्ट पर अधिकार जरूरी हो गया था यह पोर्ट सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था और इसी क्रम में 

प्रथम आक्रमण पुर्तगालीयों ने सन 1925 में किया और उलाल पोर्ट को पुरी तरह नष्ट कर दिया लेकिन महादेवी अब्बाक्का के सैन्य संचालन के समकक्ष पुर्तगालीयों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उलाल किले को सुरक्षित बचा लिया गया।

इसके अगले तीस वर्षों तक पुर्तगालीयों ने रानी के राज्य के तरफ  रुख तक नही किया किन्तु दुबारा हमला 1555 मे किया गया जब पुर्तगाल ने एडमिरल डॉन अलवरो द सिल्वा को भेजा जिसने रानी से तीस वर्ष पूर्व हुए युद्ध का हर्जाना माँगा जिसे रानी ने देने से मना कर दिया । परिणामतः युद्ध हुआ और डॉन सिल्वा व पुर्तगालीयों को भारी जानमाल का नुकसान हुआ।
तीसरा आक्रमण  इसके बाद पुर्तगालीयों ने 1557 मे किया और रणनीति के तहत सामान्य नागरिकों की हत्या लूटपाट घरों व मंदिरों को जलाने की घटनाएँ करने लगे जिसमें लगभग वाह्य नगर के सभी नागरिकों की हत्या कर दिया किन्तु रानी के जबरदस्त प्रतिरोध के समक्ष पुर्तगालीयों को फिर मुँह की खानी पडी।
चौथा हमला 1667 में किया और पूर्ववर्ती घटनाओं को दोहराया लेकिन पुर्तगालीयों को फिर विफलता हाथ लगी।

पांचवॉं आक्रमण 1568 में पुर्तगाली वॉयसराय एंटनी नोरनाह, जनरल पैक्सीटो व एडमिरल मास्करहेंस के संयुक्त सेना द्वारा जल थल चारो तरफ से अचानक घेराबंदी कर के की और इसके कारण रानी के किले पर पुर्तगालीयों का अधिकार हो गया।

लेकिन इन सब घटनाओं से रानी ने समझदारी ने निपटते हुए उलाल किले से सभी कर्मचारियों व जनता को गुप्त मार्ग से सुरक्षित बाहर निकला और उसके बाद मात्र दो सौ सैनिकों को को लेकर दोबारा किले पर आक्रमण कर दिया यह एक ऐतिहासिक युद्ध था जिसमें हजारों के तादाद की पुर्तगालीयों व सहयोगीयों की सेना के समक्ष मात्र दो सौ योद्धाओं की फौज का नेतृत्व करते हुए महादेवी ने भयंकर मारकाट मचाया बहुत से बडे जनरल जान बचाकर भाग खड़े हुए बहुत से मारे गये हजारों की संख्या मे पुर्तगालीयों ने आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन रानी यहीं तक नही रूकी पुर्तगालीयों के समुद्री बेड़े व सेना पर हमला कर स्वयं एडमिरल मास्करहेंस को मार डाला, और मंगलोर फोर्ट खाली करने की शर्त पर पुर्तगालीयों को जानबक्शी  दिया, अब पुर्तगालीयों का मनोबल पुरी तरह टूट चुका था।

लेकिन जल्दी ही पुर्तगालीयों को एक जबरदस्त सहायता मिली, रानी के पूर्व पति व उसके मित्र राजाओं ने रानी के विरुद्ध पुर्तगालीयों को युद्ध मे सहायता देने को मान गये और 

छठा आक्रमण पुर्तगालीयों ने 1569 में किया तब तक कूटनीति का परिचय देते हुए रानी ने पड़ोसी राजाओं सामंतों का एक बड़ा सैन्य गठबंधन बना लिया था जिसमें कालीकट के राजा जमोरीन भी सम्मिलित थे जो कि पुर्तगालीयों के शरण देने बाद से उनके अत्याचारों से परेशान थे यह दो बड़ी सेनाओं के मध्य एक भयंकर विनाशकारी युद्ध हुआ, राजा जमोरीन वीरगति को प्राप्त हुए।किन्तुं जीत अंतत: रानी की ही  हुई पुर्तगालीयों व सहयोगियों को भारी नुकसान उठाना पडा और वे भाग खड़े हुए।
किन्तु इस युद्ध के बाद रानी को तब बंदी बना लिया गया जब रानी के पूर्व पति ने पुर्तगालीयों को उलाल किले के गुप्त रास्तों की जानकारी दे दिया और जब किले में विजय समारोह चल रहा था उसी समय पुर्तगालीयों ने गुप्तद्वार से घुस कर रानी को बंदी बना लिया और जेल मे डाल दिया।
तत्कालीन लोगों कथाकारों ने यह लिखा है रानी अब्बाक्का को अग्नि बाण चलाने की विधा मालूम थी और वह तत्कालीन भारत मे व  उसके बाद एक मात्र इस विधा की जानकार थी और इन्ही अग्नि बाणों को चलाने की कला के कारण वह सभी युद्धों को जीत लेती थी शत्रु सेना मे रानी के अग्नि बाणों की दहशत हुआ करती थी उसके अग्नि बाणों से शत्रु खेमे मे  खलबली मच जाती थी 
वह एक योग्य सैनिक सेनापति शासक राजनीतिज्ञ, राजनीति की जानकार जन लोकप्रिय थी। योरपीय दासता से मुक्ति के लिए वह स्वतंत्रता संग्राम का सर्वप्रथमथम संघर्ष रानी ने ही आरम्भ किया वास्तव मे वही प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थी अपने जीवन के उत्तरार्ध तक वह स्त्री होते हुए भी प्रत्यक्षत: सिधे युद्ध मे भाग ले कर राज्य की सुरक्षा के लिए लडती रही, वह दक्षिण की रानी लक्ष्मीबाई के जैसे है जबकि लक्ष्मीबाई उसके तीन सौ साल बाद आयी।
आज के दिन मंगलोर के लोग अपनी महान वीरांगना रानी महादेवी अब्बाक्का जयंती मना रहे हैं। 
और हम भी इस महान विरांगना योद्धा देवी को प्रणाम करते है नमन करते है