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शुक्रवार, 17 जून 2016

जात जातः जाती


जाती शब्द का अंग्रेजी रूपांतरण कास्ट सेकरते है  फ्रन्सिसि विचारक अब्बेदुबोय ने इसे पुर्तगाली शब्द कस्ता से लिया जिसका प्रयोग प्रजातीय समूहों में विभेद के अर्थ में प्रयोग किया जिस प्रजातीय भिन्नता का बोध होता है
हालाँकि विदेशी विचारक संस्कृत के शब्द जातः से इसकी तुलना करते है जब की जातः परिवार या उत्तराधिकारी का बोध करता है
इतिहासकार कुले के अनुसार यह पूर्णतः वंशनुक्रमण पर आधारित होता है
हर्बर्ट रिजले जाती परिवारों या समूहों का संकलन है जो एक काल्पनिक पूर्वज देवता से उत्पत्ति का दवा करते हों
रिजले का कथन अब यहीं अमान्य हो जाता है क्युकी देवता या अति श्रेष्ठ पूर्वज  से उत्पत्ति का सिद्धांत गोत्र का नियम है जाती का नहीं
तो सभी भारतीय समुदाय में गोत्र नियम का अनुपालन होता है चाहे वे किसी भी वर्ण का हो
अब जाती और गोत्र का भी मामला है जो इस कदर मिश्रित कर दिया गया है की एक वर्ण के लोगो में  भ्रम  व्  भिन्नता दिखने लगती है
यहाँ समुदाय को स्पष्ट कर देना जरुरी है
समाजशास्त्रीय दृष्टि से समुदाय एक निश्चित भूस्थल पर बसा मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा समूह की सामान्य भावनाओं व् नियमों पालन करते हुए संगठित होता है तो इसप्रकार समुदाय का नियम जाति के मामले में लागु नहीं होता है
ब्लन्ट ने अपनी व्याख्या में कहा है की समूह अंतर विवहियों का  संकलन है केवल कुछ सामाजिक संपर्क के मामले में प्रतिबन्ध होते है किन्तु सदस्यता  पैतृक होती है
डा रिजले की व्याख्या भी  कुछ इसीप्रकार की है
मने सभी विदेशी विद्वानों ने  गोत्र व्यवसाय पर आधारित समुदयो को भ्रामक व्याख्या कर जाती शब्द स्थापित कर दिया
डा त्रिभुवन ने मनु स्मृति के आधार पर जाती की व्याख्या  कुछ इस प्रकार की है
यदि स्त्री पति से ठीक निचे के वर्ण की होगी तो संतति पिता के वर्ण की मानी जाएगी किन्तु यदि  स्त्री का वर्ण पति के वर्ण से उच्च हुआ तो संतति पिता के कुल से थोड़ा निम्न होता है या मिश्रण के नियम पर आधारित व्याख्या है क्योंकि रक्त का वास्तविक सम्मिश्रण नहीं हो पता है
जैसे ब्राह्मण पिता वैश्य माता की संतान अम्बष्ट
ब्राह्मण पिता शुद्र माता की संतान निषाद
क्षत्रिय पुरुष व् ब्राह्मण माता की संतान सूत
वैश्य पुरुष क्षत्रिय माता की संतान मगध
पिता वैश्य ब्राह्मण माता की संतान विदेह
आगे मनु महाराज का कथन है की पुनः इन नविन जातियों में अंतर विवाह के कारन अन्य नविन उपजातियो का निर्माण होता है
किन्तु अन्य स्मृतिकारों कुछ अन्य मत व्यक्त किया है जैसे
बोध्धयन  ब्राह्मण पिता क्षत्रिय माता की संतान को ब्राह्मण
गौतम ने अवष्ट, यञवलक ने मूर्धविशिक
शुक्र निति के अनुसार ब्राह्मण किन्तु अन्य अनुलोम प्रतिलोम विवाह से केवल शुद्र ही माना जायेगा