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बुधवार, 15 जून 2016

भारतीय रेल की गति

अंग्रेजों ने भारत में रेल सेवा की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को अपनी प्रशासनिक सुविधा के लिए की थी यह भारत के लिए ऐतिहासिक पल था जब भारत में पहली ट्रेन ने भाप इंजन से चली थी और इस ट्रेन में 14 कोच लगे थे, जिसे लोकोमोटिव सुल्तान, सिंध और साहिब नाम के इंजन खींच रहे थे जिसने 34 किलोमीटर का सफर किया जो मुम्बई से ठाणे तक था और गति लगभग पैंतीस से चालीस किमी प्रतिघंटा थी
वैसे पुरे भारत भर में रेलवे लाइनों के ले आउट पर अंग्रेजों ने सौ साल पहले काम शुरू कर पूरा कर दिया था किन्तु उस ले आउट पर आजादी के बाद से बीस प्रतिशत भी काम आज तक नहीं किया जा सका है पहाड़ी राज्यों में तो आज भी लोगों के लिए आश्चर्य की बात है रेल और सपना ही रही है हलांकि कुछ जगहों पे नयी सरकार ने रेल लाइन डाली है और ट्रैन सेवा भी शुरू की है लेकिन यह सब अब से क्यों, रेल पर काम देश में बीस तीस साल पहले ही पूरा हो जाना चाहिए था
चीन की हालत कमोबेस भारत के जैसे ही थी लेकिन उसने नब्बे के दसक में रेल सुविधा पर काम शुरू कर दिया और आज रेल की पहुँच चीन के कोने कोने में है उन्होंने गति सुरक्षा और नेटवर्क पर भी काम किया और दिन के रहते हुए चीन के एक कोने से दुशरे कोने तक यात्रा की जा सकती है चीन के रेल नेटवर्क के सुधIर का एक मुख्य कारण शंघाई और भिजिग जैसे शहरों में जब जनसँख्या का दबाव बढ़ने लगा तो उन्होंने सबसे पहले यतायात की सुविधा पर ही काम शुरू किया

rail

भारत की स्वतंत्रता के समय रेल नेटवर्क की लंबाई 53,596 किलोमीटर थी, जबकि चीन का रेल नेटवर्क मजह 27 हजार किमी. ही था। और वर्तमान भारत में जहां महज 64 हजार 600 किलोमीटर का नेटवर्क है, वहीं चीन का रेलवे नेटर्व 78 हजार किलोमीटर पहुंच गया है
भारत के हिसाब से देंखे तो दिल्ली पुणे अहमदाबाद मुंबई में भयंकर जनशंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा था तो सरकार को रेल नेटवर्क सुदृढ़ करना चाहिए था अगर आज बुलेट ट्रैन होती तो बनारस से दिल्ही कोई भी कामकाजी व्यक्ति सुबह सात बजे बुलेट ट्रैन पर चढ़ता और नौबजे तक अपने ऑफिस में होता फिर शाम को चार पांच बजे काम कर बुलेट ट्रैन पर चढ़ता और शाम सात बजे तक वाराणसी में होता और दिल्ही भीषण जनसँख्या के दबाव से मुक्त होती क्यों की सभी अपनी जमीनों पितृ निवास से जुड़े रहना चाहते है जबकि यह संभव नहीं है तो लोग कमसे कम दस हजार से अधिक की मासिक किराएदारी खर्च कर के दिल्ही में रहने को मजबूर है
जब भारत में पहली रेल चली थी तो उसकी गति चालीस किमी प्रति घंटा थी और आज डेढ़ सौ से अधिक सालों में रेल की गति में पच्चीस से तीस किमी प्रति घंटे की गति को ही बढ़ा पाए है और तो और सबसे तेज ट्रैन राजधानी शताब्दी आरम्भ हुई अस्सी के दशक में उनकी गति बढ़ने के बजाये काम ही हुई है
भारतीय रेल एशिया का सबसे बड़ा दूसरा व् विश्व का चौथा रेल नेटवर्क है और एकल प्रबंधनाधीन सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। भारत के यातायात परिवहन क्षेत्र का मुख्य संघटक है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है,यह न केवल देश की मूल संरचनात्‍मक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि बिखरे हुए क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने में और देश की राष्‍ट्रीय अखंडता का भी संवर्धन करता है। साथ ही भारत रेल इंजनों व् कोचों का एक बड़ा निर्माता व् निर्यातक देश है दुनिया के कई देशो को उनके मनमाफिक गति व् सुविधा के ट्रैन व् कोचों का निर्यात तक करते है लेकिन स्वयं देश के लिए ऐसा करना मुश्किल रहा है पिछले दो तीन दशकों से
इसमें भी सबसे बड़ी बात है की रेल ट्रैक का दोहरीकरण व् विद्युतीकरण भी आज तक साठ प्रतिशत के स्तर तक नहीं हो पाया है हालाँकि नयी सरकार ने भारत में इस मामले में पिछले दो वर्षो में काफी काम किया है सुदूर पूर्व के राज्यों में भी रेल नेटवर्क के विस्तार पर काम किया गया और सेमि हाई स्पीड टेलगो ट्रैन का भी परीक्षण किया जा रहा है यह सब रेल और यातायात के दृष्टिकोण से भारतीय जन समुदाय के भविष्य के शुभ संकेत है यदि इसी जिजीविषा व् गति से रेल सुधर का कार्य जरी रहा तब
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