ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

FOUNDER OF REPUBLICAN & UNION RULING SYSTEM, गणतंत्र व संघीय शासन के जन्मदाता

★ Union of India ★ Republic of India
प्रधानमंत्री जी ने संसद मे धन्यवाद प्रस्ताव भाषण के दौरान विपक्ष को उत्तर देते हुए कहा कि भारत मे लोकतंत्र गणतंत्र प्रणाली भारतीय प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी देन नही है
कदाचित यह सत्य भी है क्योंकि खुद नेहरू जी अपनी पुस्तक डीस्कवरी ऑफ इंडिया में यह लिखते है
और उसी तरह का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री बताते हैं कि भारत मे गणतंत्र व्यवस्था ईसा पूर्व महाजनपद काल में भी थी जिसमें प्रमुख गणतंत्र लिक्षवी वैशाली आदि थे।
प्रधानमंत्री का वक्तव्य वस्तुतः ऐतिहासिक व लेखकिय प्रामाणिक तौर पर सत्य है इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन उन्होंने भारत के प्रथम गणतंत्र व उसके प्रधान का नाम नहीं लिया।
हालाँकि गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली भारतीय मूल की खोज व शासन व्यवस्था है किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यही है स्वतंत्रता के पूर्व ईसा पूर्व भारत में गणतंत्र का अन्वेषक जन्मदाता आखिरकार है कौन, इस गणतंत्र का प्रथम प्रधान कौन हुआ।
साम्यवाद, समाजवाद, निगमवाद, पूँजीवाद आदि सभी प्रकार की व्यवस्था के जन्मदाताओं के नाम से लोग परिचित है किन्तु गणतंत्र के सिद्धांत के प्रतिपादक के बारे में लोग जानकारी से सर्वथा अनभिज्ञ ही है
तो गणतंत्र के बारे में जो सर्वप्रथम उल्लेखन है वो महाकाव्य काल मे प्राप्त होता है जिसमें की महाभारत काल के समय यह व्यवस्था संज्ञान में आती हैं महाजनपद काल से पुरातन यह शासन सिद्धांत इस लिए माना जाएगा क्योंकि महाजनपद काल प्रमाण ईसा पूर्व 600 के आसपास ठहरता है जबकि यदि डॉ बीबी श्रीवास्तव के महाभारत कालीन स्थलों के उत्खनन प्रमाण को ही आधार मान लें तो महाभारत काल ईसा पूर्व 1400 से  2500 होता है साथ ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार महाभारत युद्ध समाप्त होने व कलियुग आरम्भ हुए पांच हजार वर्ष से अधिक हो चुकाहै।
इस आधार से महाभारत कालीन प्रमुख गणतंत्रों के नाम इस प्रकार हैं जो कि विभिन्न सीमा क्षेत्रों  के एक दूसरे से सर्वथा दूर अवस्थीत थे
1-अंधक
2- वृष्णी
3- यादव
4- कुकुर
5- भोज
इन चारों गणों की विशेषता यही थी समाज के सबसे योग्य वीर चतुर राजनीति मे प्रकांड को ही गण का प्रधान स्वीकार किया जाता था किन्तु सबसे बड़ी नोट करने योग्य घटना यही रही कि ये सभी गण राज्य केे रूप मे अस्तित्व मे द्वारकाधीस कृष्ण व बलराम के कारण आते है अथवा निर्मित होते हैं जबकि इसके पुर्व ये सभी छोटे छोटे ग्राम समाज के रूप मे किसी न किसी राजा राज तंत्र के अधीनस्थ शासन के अंतर्गत रहे और कृष्ण के कारण में गणराज्य बने।
इन सभी गणतंत्रो को स्वायत्तता प्राप्त थी साथ ही स्वशासन का अधिकार भी प्राप्त था हालाँकि बाद में जब इन पांचो राज्यों का जब संघ बना तो इन सभी के प्रमुखों ने द्वारकाधीस कृष्ण का नेतृत्व स्वीकार उन्हें संघ का अध्यक्ष बना दिया। यह प्रणाली कमोबेश वर्तमान भारतीय राष्ट्रपति शासन के अनुरूप ही लोकतांत्रिक था गणतंत्र के शासन हेतु कई प्रकार के नियम व विधि बनाए गये थे इसका उल्लेख महाभारत के शांति पर्व मे विस्तार पुर्वक दिया गया है वस्तुतः शांतिपर्व अध्याय राज्य शासन प्रशासन के ज्ञान विषयक तत्कालीन उत्तम श्रोत है तथा वर्तमान परिदृश्य के लिए भी विधि निर्माण हेतु अति प्रासंगिक  सर्वोत्तम भाग है।
शांति पर्व में स्पष्टतया कहा गया है कि शुद्र सेवकों के भरण पोषण का उत्तरदायित्व द्विज का होगा। साथ ही किसी भी वर्ण के प्रति जन्मना वर्ण व्यवसाय का उत्तरदायित्व अपनाने की बाध्यता नही रही। क्योंकि विदुर,मातंग, कायव्य आदि जन्मना शुद्र होते हुए भी अपनी योग्यता के कारण राजतांत्रिक प्रणाली मे मंत्री परिषद के प्रधान व गणतंत्र मे प्रमुख हुए। शुद्रों को सेवावृत्ति के परितोष के अतिरिक्त वार्ता कृषि, वाणिज्य, पशु पालन आदि का भी अधिकार प्राप्त था, स्त्रियों को भी शासन में व मंत्री परिषद में स्थान प्राप्त था जिसमें कि द्रोपदी को पंडिता कहा गया है कृष्ण की पत्नी शासन कार्यों मे प्रत्यक्ष भाग लिया करती थी। गणतंत्र प्रमुख व राजा निरंकुश नही सकता था यदि वह ऐसा अत्याचारी हुआ तो प्रजा द्वारा मार डाला गया है ऐसे निरंकुश अन्यायी दुराचारी, अत्याचारी शासकों में बेण, नहुष, सुदस नाम उल्लेखनीय है जो प्रजा द्वारा मार दिए गये।
एक स्थान पर लिखा है कि
अरक्षितार हर्तार विलोप्तार नायकम्,
तं वै राजकलिं हन्यु प्रजा ससह्म निर्धृणं।।
महामृत्यु अध्याय 13, श्लोक 36, के अनुसार दुराचारी शासक अध्यक्ष वध योग्य है।
[10/02 1:20 pm] pbdixit: गणतंत्र के शासन के लिए विधियों  के लिए कई उल्लेखनीय उदाहरण महाभारत में मिलते है बाल विवाह निषेध था  सभी जन व वर्णों को समानता का अधिकार प्राप्त था किसी को स्पेशल ट्रिटमेंट नही उपलब्ध था जैसे एक श्लोक मे लिखा है
चतुस्पदी हि नि: श्रेणी ब्राह्मण्येया प्रतिष्ठिता,
एतां आरूह्म नि: श्रेणीम् ब्रम्हलोके महीयते।।
शांतिपर्व 234
 चारो वर्ण के लोगों को चारो आश्रम में यापन पालन की छूट थी और ब्रह्मलोक जाने का उपाय सभी वर्णो को बताया गया है किन्तु गृहस्थ आश्रम को श्रेष्ठ कहा गया है
गणतंत्र के शासन हेतु 36 मंत्रालयों का उल्लेख हुआ है जिन्हें तीर्थ कहा जाता था गणतंत्र के प्रधान अध्यक्ष के सहायतार्थ ये 36 विभाग थे जिसमें प्रथम महामात्य प्रमुख फिर पुरोहित फिर युवराज उत्तराधिकारी फिर चमूपति सेनापति और अंतिम विभाग अरण्यकाध्यक्ष वन मंत्री होता था
इस प्रकार गणतंत्र प्रणाली संघीय शासन के जन्मदाता व गण के संघ के प्रथम अध्यक्ष के रूप मे कृष्ण का ही उल्लेख सर्व प्रथम महाभारत में है अतः गणतंत्र व संघात्मक शासन  इसके नियम विनियम संविधान भारतीयों की ही देन है जिसमें समयानुकूल सुधार होते रहे और महाजनपद काल मे यह शासन प्रणाली उन्नत अवस्था मे थी।