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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

JNU की उपलब्धि के नाम पर सिर्फ कुछ IAS बने हैं

★ Dominion of India ★ Government of India ★ Union of India ★ Republic of India ★ India that is भारत
JNU की उपलब्धि के नाम पर सिर्फ कुछ IAS बने हैं जिन्होंने सचमुच पढाई कीआपलोग लगभग 500 करोड़ की सब्सिडी वाले विश्वविद्यालय के एलुमनाई लिस्ट देखें
किसी भी साहित्यकार को नोबेल प्राइज नही मिला,किसी भी साहित्यकार को ज्ञानपीठ पुरुष्कार आजतक प्राप्त नही हुआ है,एक भी नुक्लेअर साइंटिस्ट नही है,एक भी बायोकेमिस्ट्री का वैज्ञानिक नही है,कोई अंतरिक्ष स्पेस वैज्ञानिक साइंटिस्ट नही है,एक भी अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कलाकार,कोई भी कला में नही है यहाँ से,
कोई भी अर्थशास्त्री अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप नही छोड़ पाया जिस पर देश गर्व करसके, जैसे बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस जिन्होंने माइक्रो इकोनॉमिक्स से बांग्लादेश के गरीबों का उत्थान किया.यहाँ से कोई उद्योगपति नही निकला,अगर यहाँ से निकले हैं तो सिर्फ बकलोल बकैती वाले नेता या अध्यापक जिसमे राजनीती के क्षेत्र में नाम है वह है प्रकाश कारंत और उनकी पत्नी वृंदा कारंत,सीताराम येचुरी,निर्मला सीतारमण, डी.पी.त्रिपाठी, उदित राज आदि सामान्य से नेता हैं जिनमें से कोई मुश्किल से किसी लोकसभा सीट से जीता होगा. 
यहाँ से निकलने वाले पत्रकारों में जो JNU से पढ़ा हो,आजके AAP नेता आशुतोष हैं क्या आपलोग उनकी किसी रिपोर्ट को याद करते हैं जिसमे चिरकुटई छिछोरपन के अलावा कुछ और समझ में आया हो, बल्कि ऐसे ही पत्रकारों की वजह से पत्रकारिता व् पत्रकारों के स्तर सम्मान में कमी हुई है. क्या JNU से निकले किसी पत्रकार की रिपोर्ट पर किसी को अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला है ? उमेश उपाध्याय, उदयन मुखर्जी जैसे पत्रकारों की उपलब्धि क्या है आप जानते ही होंगे, 
और यहाँ के ज्यादातर शिक्षाविद प्रोफ्फेसर यहीं के पढ़े हैं और जुगाड़ से यहीं खाना पीना और रहना कर रखा है कि कोई यहाँ से जाना ही नही चाहता है इसीलिए ये लोग अपनी जिन्दगी का ज्यादातर भाग यहाँ नेतागिरी में बिता देते हैं. जब सोवियत जिन्दा था तब कल्चरल एक्सचेंज के बहाने यहाँ के टीचर USSR और ईस्टर्न ब्लाक का दौरा करते थे,वोडका का स्वाद भारतीयों ने तब से ही ज्यादा जाना और दुर्भाग्य से USSR खत्म हो गया , रूस अपनी ही अर्थव्यवस्था को ही सँभालने में लगा है और फोकटिया काम उन्होंने बंद कर दिया है, 
यहाँ के वामपंथियों ने यहाँ पढने वाली कई पीढ़ियों का भविष्य ख़राब कर दिया. इनके नाटकीय भाषणों से पढने वाले छात्र अपनी पढाई छोडकर नुक्कड़ नाटक,मोमबत्ती जलना,मानव श्रृंखलाएं बनाना करने में ही लगे रहे और पढाई भूल गये इसीलिए यहाँ से ज्यादातर छात्र 35-40 की उम्र में नेतागिरी में भरपूर इस्तेमाल होजाने के बाद, बेकामकाज के हो जाने बाद ही बाहर निकल पाते हैं 
हमारा उद्देश्य JNU को बदनाम करना नही है लेकिन इस सच्चाई को सामने लाना है ,इसके अलावा मेरी प्रार्थना वामपंथियों से है यहाँ पढने वालों की जिन्दगी से खिलवाड़ न करें इन्हें पढने दें और बाद में चाहे इन्हें अपना कैडर बनायें ये इनकी इच्छा हैं.यहाँ पढने वाले कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके मां-बाप इस आशा में उन्हें यहाँ भेजते हैं कि वे पढ़लिखकर अपने परिवार का जीवन स्तर उठायें,
JNU में वार्षिक फीस रु .खाना बहुत सस्ता हैं बाहर वाले भी आ कर टिक सकते है, लगभग हर १५ विधायार्थियो पर एक प्रोफेस्सर और हर विद्यार्थी पर सरकार लगभग रु 3 लाख खर्च करती ! 
और खालिद जो हॉल में हुए राष्ट्र विरोधी कार्यक्रम का अगुवा था  और विद्यार्थियो और अलगाव वादियो के बीच  का काम करता था..IB की रिपोर्ट के अनुसार पकिस्तान के लोगो को विद्यार्थियो को भड़काने के लिए लोगो को भेजता है.