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गुरुवार, 12 नवंबर 2015

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य एवं ध्रुवस्वामिनी एक महान ऐतिहासिक प्रेम कथा जो इतिहास के पन्नो में खो गयी

समस्त भारतीय प्रायद्वीप व् समुद्रीय राज्यों के विजेता शासक वयोवृद्ध सम्राट समुद्रगुप्त के शयन कक्ष में उनके आदेश के उपरांत दोनों गुप्तचर उपस्थित थे
और उस समय वैद्य राज धन्वन्तरि सम्राट समुद्रगुप्त का उपचार कर रहे थे
सम्राट अत्यंत वृद्ध व् रुग्ण हो चुके थे, जबकि वैद्य राज धन्वन्तरि की कठोर हिदायत थी की किसीभी प्रकार का अशुभ समाचार सम्राट तक न पहुँचाया जाये, किन्तु प्रजारक्षक सम्राट के संज्ञान में वो सब सूचनाएं आ ही जाती है जिससे जनता को कष्ट हो.

गुप्तचरों ने बताया की मिथिलांचल क्षेत्र के ओर शिन (चीन) जाती के उतपाती लोगो ने जनता को परेशान कर रखा है और बोलते है की भगवन बुद्ध का क्षेत्र है यह धरती हमारी है और यहाँ से वैदिक  सनातन पंथी लोग चले जाएँ। शिन (चीन) जाती के लोग गया व् कशी क्षेत्र को अपना बताते है

सम्राट समुद्रगुप्त क्रोधित हो कर बोले - हमने  तो शीनो को बुध स्थलों तक निर्बाध भ्रमण की छूट दे रखा उसका यह परिणाम, यदि ऐसा है तो सेना को तत्काल कार्यवाही के आदेश देता हु, उनका समूल विनाश निश्चित करे, हम स्वयं चलेंगे---- आदेश का पालन हो तत्काल,

और सम्राट के आदेश को तत्काल सेना व् सेना प्रमुख को दे दिया गया तैयारी आरम्भ हो गयी
तब वैद्य राज धन्वन्तरि सम्राट समुद्रगुप्त से बोले - किन्तु चक्रवर्ती आप का स्वास्थ्य किसी युद्ध में भाग लेने के योग्य नहीं है 
और तभी दक्षिण क्षेत्र के सेना प्रमुख व् समुद्रगुप्त के मित्र

वयोवृद्ध वीर लोरिक का आगमन हुआ और प्रश्न किया की - सम्राट क्या क्या अब आप की अवस्था युद्ध में भाग लेने की है हम लोगो को की अवस्था वानप्रस्थ की है हमे यह राज्य भार योग्य कुमारो को सौप कर राज्य का त्याग कर देना चाहिए।   

सम्राट समुद्रगुप्त- किन्तु मित्र वीर लोरिक युद्ध में राजा का होना अत्यंत आवश्यक होता है और  मेरे पुत्र रामगुप्त की हठ धर्मिता उदंडता को आप जानते है मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है उसे इस महान भारत भूमि व् गुप्त साम्राज्य का शासक उत्तराधिकारी बनाने की. ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा प्रथम पूर्णतया सर्वथा गलत निर्णय रहा, हम इसी पश्चाताप में मृत्यु को प्राप्त होंगे।

वीर लोरिक ने कहा- मित्र सम्राट आप तो स्वयं विष्णु है एक प्रजापालक भगवन विष्णु के समकक्ष ही है राजा को सर्वथा अपने निर्णय राज्य व् प्रजा हित में बदलने के अधिकार संरक्षित होते है मेरा विचार है की 'युवराज चन्द्रे' को शीनो का विनाश के भेजा जाये भले ही उनकी आयु काम हो किन्तु वो योग्य है महाबली योद्धा व् रणनीतिकार है अवंतिका में हुए विद्रोह को कितनी सरलता से शांत कर दिया था युवराज चन्द्रे ने, और शकों के विद्रोह को कुचलने में युवराज रामगुप्त असफल हुए यदि 'युवराज चन्द्रे' मिथिलांचल में शांति स्थापित का देते है तो उन्हें ही उत्तराधिकारी घोषित किया जाये

सम्राट समुद्रगुप्त- उचित है मित्र, युवराज चन्द्रगुप्त को इस अभियान का नेतृत्व के लिए आदेश दिया जाता है