ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 2 जुलाई 2017

भीड़ का चरित्र और आतंकवाद

"भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता" यह एक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है
इस सिद्धांत स्थापन वामपंथ के उदय के समय से मान्यता प्राप्त है
और फ्रांस की क्रांति के बाद से
कदाचित यह किसी हद तक सत्य भी है
यह सिद्धांत इसलिए भी मान्यता प्राप्त है
जिससे कानूनी कवर व् फेवर मिल सके इस लिए स्थापित किया गया है संभवतः
लेकिन कौन सी किस प्रकार भीड़ यह भी जानना होगा
भीड़ का प्रमुख आवश्यक तत्व होता "आकर्षण एवं आमंत्रण तत्पश्चात कार्यांन्वन उग्रता या शांति से "
एक भीड़ जो किसी एक दो के बुलावे पे इकठ्ठा नहीं होती
बल्कि किसी तात्कालिक क्रिया या घटना के फलस्वरूप में प्रतिक्रिया वस् जन समूह एकत्रित हो जाता है
जैसे कोई एक्सीडेंट हो तो लोग बिच बचाव या तमसा देखने को इकठ्ठे हो जाते है, कहीं आग लगी हो, बाढ़ हो पानी हो यहाँ तक की लोग हेलीकाप्टर या कोई लोकप्रिय व्यक्ति रस्ते से जाता हो तो देखने के लिए इकठे हो जाते है
इस प्रकार की भीड़ में आकर्षण तत्व है किन्तु किसी व्यक्ति या संस्था विशेष द्वारा स्पष्ट आमंत्रण नहीं है
अतः उपरोक्त प्रकार की भीड़ का चरित्र तात्कालिक घटना के अनुरूप बनता है लेकिन सम्मलित लोगो मनः स्थिति प्रायः अलग अलग होती है
दूसरे प्रकार में सिद्धांत यह है की
जब किसी विशेष प्रयोजन से एक विशेष मान्यता वाले लोगो को आकर्षित कर जनसमूह के रूप में इकट्ठा होने आमंत्रण दीया जाता है जिसमे स्थापित एक दो या उससे अनधिक नेतृत्व कार्य दिशा दे रहे हो और कार्य दिशा के अनुपालन में भीड़ में सम्मलित लोग अपनी मनः स्थिति सामूहिक रूप से बदल ले और स्थापित अनधिक नेतृत्व के कथनानुसार उग्र हो जाये।
ऐसे भीड़ में शांति वाला कैंडिल मार्च भी होता है फिल्म देखने को इकट्ठा हुए लोग या फिर किसी लोकप्रिय नेता का भाषण सुनने को इकट्ठे हुए लोगो की भीड़ हो या दंगा बल्वा करने वाली हत्यारी भीड़।
ऐसे भीड़ का चरित्र स्पस्ट होता है मनः स्थिति सामूहिक रूप से एक होती है
लेकिन जैसे यह स्थापित किया जा चूका है की भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता ? उसी नियम के तहत आतंकवाद उग्रवाद का कोई मजहब नहीं होता स्थापित कर दिया जायेगा और यह भी एक एक समाजशास्त्रीय सिद्धांत के रूप में मान्यता प्राप्त हो जायेगा।