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शनिवार, 17 सितंबर 2016

खटिया


जब सारी दुनिया के लोग पत्थर के बने आयताकार वस्तु पर बैठने और सोने के लिए उपयोग करते थे तब हमारे देश में लोग खटिये को बनाना निर्माण व उपयोग करना जान गये थे
खटिये का अवशेष सिंधु सभ्यता में भी संभवतः मिले हो, यह एक विशेष प्रकार का नरम कंफर्टेबल शॉक अबजर्बर फ्लेक्सीबल आरामदायक आराम करने सोने बैठने के आदि प्रकार के कार्यों मे प्रयुक्त होने वाला चौपाया प्रकार का निर्जीव काठ का सिरे पांव व रस्सीयों से बना होता है
वैसे यह संपूर्ण उत्तर भारत मे बेहद लोकप्रिय है जो तीन गुणा छ के आयताकार डिजाइन चार लकड़ी के उंचे पायों में चार लकड़ी के डंडे बाजूऔ को जोड़कर  बनाया जाता है
इसके सत्तर प्रतिशत हिस्से को विशेष तरह से कलात्मक ढंग से चार पतली लगभग दो एमएम की रस्सीयों को तीर्यक ढंग से एक साथ चारो सिरो बाजू से मिला कर बुना जाता है
ये रस्सीयां प्राय: सन या जूट की बनी होती है शेष तीस प्रतिशत हिस्से को एक विशेष तरह से क्रास और बालों की चोटी जैसे बूना जाता है जिससे की खटिये के शेष हिस्सों के तनाव फ्लेक्सीबीलटी को कम ज्यादा करना होता है।
और खटिये के विशेषज्ञता प्राप्त बुनकर भी होते है भाई, सबको खटिये की बुनकइ नही आती किसी गांव गिराव में कोई एक या दो एक्सपर्ट खानदानी विशेषज्ञ होते हैं ।
यह खटिया भारतीय ग्रामीण गरीब जीवन शैली का अभिन्न अंग है बाल्यकाल से लेकर समस्त जीवन में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और मानव अपने अंत समय मे भी यही खटिये को ही पकड़ता है  और मृत्यु के बाद भी खटिये को दान करने की प्रथा आज भी ग्राम समाज में बरकरार है
खटिये पर बैठना एक बहुत ही सम्मान व गर्व  का विषय होता है शादी विवाह विवाद पंचायत आदि बहुतेरे ग्रामीण समाज के कार्यक्रम खटिये पर ही आज तक निपटाये जाते हैं।
खटिया समाज की बहुत ही सम्मानजनक विषय वस्तु है इसका दुरुपयोग समाज बर्दाश्त नही करता और अंतत: लोग खटिया खड़ी बिस्तरा गोल कर चल देतेे हैं
बात खटिया कल्चर की है जब शहरी लोग ग्रामीण समाज के लोगों से खटिये पर गुफ्तगू करने की मंशा करते है ग्रामीणों में शंका उत्पन्न होना स्वाभाविक सा है  इसी देश मे गुजरात से हीरा विदेशों में, आंध्र से अंतरिक्ष में, चेन्नई से चाँद पर, कर्नाटक से मंगल पर अंतरिक्ष यान आये दिन भेजा जा रहा है और बाकी देश भर में अभी भी खटिये पर ही पंचायत करने की बातें हो रही है। तो ग्रामीणों के कान खड़े ही हो जाएंगे।
वैसे इस उत्तर क्षेत्र के नेतृत्व ने लोगों को खटिये मे ही उलझाये रखा हुआ है जैसे खटिये से आगे जाने नही देना चाहते है लगता है न ही जनता की ऐसी चाहत लगती है लोग अपनी सोच उपर खुद नही उठने देना चाहते है हर वस्तु परिस्थिति को स्वीकार करने की आदत सी हो गयी है।
किंतु खटिया विशुद्ध पुरातन भारतीय खोज है सरकार को इस पर पेटेंट के लिए दावा करना चाहिए। आजादी के बाद खटिये को वो सम्मान नहीं मिला जिसका यह खटिया हकदार रहा है,, साथ ही खटिये के बुनकरो को सम्मानित करना चाहिए जिन्होंने इसके निर्माण कला को अाजतक सँजोए रखा है बीना किसी सरकारी सहायता के। गरीबों का एक मात्र सहारा खटिया ही है।

"छप्पन छूरी"

किसी भी खूबसूरत को देख अमुमन लोग कहते है "छप्पन छूरी" है
तो यह उपमा अायी कहां से
यह जगनिक ने लिखा है
आल्हा रूदल बावन वार, छप्पन छूरी नौ तलवार।
खैर यह "आल्हा" महाकाव्य वीर रस से संबंधित है और आल्हा खंड स्वर में सुनने के बाद बीमार और कमजोर यहां तक कि टीबी ग्रस्त  इंसान के भी सिना चौड़ा रोगंटे खड़े हो जाए और हारी हुई लड़ाई मे लड़ने को तैयार हो जाए।
सनातनी हिन्दू लोग महावीर सिद्धार्थ अंगद आदि अन्य के लिए लड जाएंगे जबकि उक्त संप्रदाय के लोग बेहद सक्षम है स्वयं के संतों देवताओं गुरूओं के अपमानित कर्ताऔ को प्रतिउत्तर देने में।
रही बात सनातनी संत कि तो हमारे यहां चारों पीठों नेे संत घोषित करने के कभी कोई विधि नियम नही बनाए
हां लेकिन वे महामंडलेश्वर मठाधीस की घौषणा कर देते है देश में होने वाले  चारो कुंभ के दौरान, लेकिन कौन संत यह बता सकने में अक्षम रहते है । परमहंस, किनाराम, देवरहवा बाबा अवधुत बाबा आदि को ये चारों पीठ सनातन के पुरूद्धार हेतु निश्छल हो  संत घोषित कर देते तो क्या खराबी हो जाती।
आजकल ये पीठाधिश्वर सांई बाबा पर इतना शोर मचाते है ये ऐसी स्थिति कभी होती ही नही यदि किसी सनातनी संत को अंश अवतार बता ये लोग कुंभ के समय संत घोषित करते पूज्य होने देते।
अवधुत बाबा अभी नये ही थे बहुत लोगों ने देखा ही होगा उनके जीवित रहते भर में और आज भी उनके संस्थान कुष्ठ रोगियों के निदान व सेवा मे विश्व भर मे सर्वोत्तम व अग्रणी है। कोई टेरेजा माता इनके अंश मात्र भी नही ठहरती कुष्ठ सेवा में, वस्तुत: संसार के कई राष्ट्र और भारत सरकार ने भी इनसे प्रभावीत हो कुष्ठ रोग उन्मूलन अभियान चलाया और इन सभी महान भारतीय बाबाओं संतों का महत्व हम नही अमेरिकन और योरपीयन जानते है इन सब संतों के बड़े बड़े मठ और सेवा संस्थान और अनुयायी भी विदेशों मे ही है
खैर देश की बहुसंख्यक जनता जानती है कि कौन संत कहलाने योग्य है कौन पूज्य बस आपलोगों ने बहुसंख्यक जनता से सीधे जुड़ने का सुअवसर गंवा दिया नही शंकराचार्य जी, आप लोग अपने श्रेष्ठतम का राग अलापते रहें और आम जनमानस से दूर कट कर रहें।
और भारतीय सनातनी जनता संगठन बावन युद्धों की वीरता और नौ तलवारो व छप्पन छूरी हथियारों का स्वप्ननिल बखान करती रहे और अंदर से कब खोखले होते जाएंगे आप लोगों को पता ही नही चले।
वैसे साबरमती के संत में क्या दिक्कत रही उन्हें महात्मा मे ही निपटा दिया गया उन्हें भी वैसे ही अपमान सहने हुए जो किसी भी सामान्य या महान ने सहे होंगे वो पत्नी समेत गरीब गुर्बो मजलूमों रोगियों की सेवा ही करते रहे, वो भी किसी चमत्कारिक संत से कम थोड़े ही थे।