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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

कांस्य युगीन विशुद्ध भारतीय सभ्यता जब यूरोप आदि स्थलों पर सभ्यता नाम की चीज न थी

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कांस्य युगीन विशुद्ध भारतीय सभ्यता
जब यूरोप आदि स्थलों पर सभ्यता नाम की चीज न थी
सिंधु घाटी सभ्यता का विकास ताम्र पाषाण युग में ही हुआ, किन्तु अपनी समकालीन नागरिक सभ्यताओं से कहीं अधिक उच्चकोटि का विकास देखने को मिलाता है।
इस काल में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में 2500 ई.पू. से 1700 ईं पू. के बीच एक उच्च स्तरीय सभ्यता विकसित हुई (कार्बन डेटीगं में विवाद के कारण कुछ विशेषज्ञ पाँच हजार ई. पू. मानते हैं)
जिसकी प्रमुख विशेषताओं में नगर नियोजन व्यवस्था जोकि बहुत उच्च कोटि की थी। लोग नालियों, सड़को स्नानागार व शौचालय के महत्व को जानते थे । नगर के सड़क परस्पर समकोण पर काटते थे । जिससे नगर आयताकार टुकड़ो में बंट जाता था । एक सार्वजनिक स्नानागार भी मिला है जो यहां के लोगो के धर्मानुष्ठानों में नहाने के लिए बनाया गया होगा ।
यहाँ के लोग आपस में तथा प्राचीन मेसोपोटामिया तथा फ़ारस से व्यापार भी करते थे ।
लेकिन सबसे प्रमुख लोगों का विश्वास प्रतिमा पूजन में था । सिंधु सभ्यता के लोगों में अाज के भाँति लिंग पूजा का भी प्रचलन था। प्रकृति पूजक के रूप में यहाँ के लोगों साँड व वट वृक्ष की पूजा भी करते थे
किन्तु विद्वानों के अनुसार यह निश्चित नहीं था कि यह हिन्दू संस्कृति का विकास क्रम था या उससे मिलती जुलती कोई अलग सभ्यता । 

यहाँ कृषि बहुत उन्नत थी खेत जुताइ के प्रमाण मिले जिसमें हल का फाल, धान की भूसी, काटन सूती वस्त्र तक के प्रमाण मिले हैं, लौह व कांस्य धातु की ेभी जानकारी थी
साथ ही वस्तु विनिमय हेतु मुद्रा का उपयोग करते थे
लेकिन यहाँ भी कुछ विद्वानों ने द्रविड़ सभ्यता तो कुछ आर्य तो कुछ बाहरी जातियों की सभ्यता वाला विवाद खड़ा कर रखा हैं और किसी भी तरह से भारतीयता से जोड़कर नहीं देखने का प्रयास नहीं किया।
एक सबसे बड़ी बात यह कि सिंधु सभ्यता के लोगों की अपनी लिपि थी किंतु अभी तक यह पढ़ी नहीं जा सकी है
हालाँकि नई सूचना के अनुसार कुछ सफलता मिली है जिससे आने वाले दिनों में बड़े खुलासे हो सकते है
वैसे यह सभ्यता लगभग पचास लाख वर्ग मील मे फैली हुई जिसके बहुत से स्थलों में ज्यादातर पाकिस्तान व अफगानिस्तान में हैं साथ ही लगभग पच्चीस फीसदी हिस्सो की खुदाई से जानकारी मिल सकी है
सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। इसका विकास मुख्यत: सिंधु नदी के किनारे की घाटियों में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा , चन्हुदडो , रन्गपुर् , लोथल् , धौलाविरा , राखीगरी , दैमाबाद , सुत्कन्गेदोर, सुरकोतदा और हड़प्पा में हुआ था। किन्तु विस्तार महाराष्ट्र के औरंगाबाद से लेकर कश्मीर मध्य उत्तर प्रदेश से लेकर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था
ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
इसके खत्म होने विनाश के बारे में अनुसंधानकर्ताओं में विभिन्न मत हैं जिसमें प्रमुख जल प्रलय बाढ व दूसरा विनाशकारी परमाणु युद्ध जैसे की भी अाशंका व्यक्त किया गया है