भारत जैसे लोकतांत्रिक खुली आबो हवा व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले मुल्क मे बहुत से आवामी खैरबरदार सामाजिक संगठन , NGO आदि हैं खवातीनी संगठन व महिला कार्यकर्ता भी है लेकिन इस खवातीन के टक्कर की सोच ही नही सकते यहाँ इस मुल्क मे अगर महिला कार्यकर्ता हैं भी मुल्क परस्त तो शायद ही?
वरन यही सुनने को मिलेगा कि फंला महिला कोई डेवलपमेंट वर्क को रोका, कार्यकर्ता ने बांध बनने से रोका, विकलांगों के साइकिल नकली पाँव बेच खाये, किसी रेपिस्ट को छुड़ाने के लिए कोई अदालतों और कानून को अपने मन मुताबिक करवा लिया, नक्सलियों के समर्थन और फौज के विरोध मे कोई है सब की सब एक साधारण सूती साड़ी के अंदर कैसी कूटनीतिक विचारधारा के लोग है कि अनुमान लगा पाना असंभव सा रहा।
अस्मा
तब अपनी आवाज बनती़ होती है जब पाकिस्तान और वहा की बेबस मजलूम आवाम फौजी हुक्मरानों, कट्टरपंथीयों व जनरल जिया के बूटों तले रौंदी जा रही होती है तब
एक अठारह साला मासूम लड़की अस्मा के वालिद गुलाम जिलानी को जनरल जिया की फौजी हुकूमत फौजी कारगुजारीयो के खिलाफ बोलने पर जेल में ठूंस देती है, जहाँ मौत ही तमाम मुकम्मल हुआ करती थी।।
तब खाबों खयालों खुशियों के दिनों से निजात हो अस्मां अपने वालीद के बेगुनाही के लिए अकेले पाकिस्तानी फौज से टकरा उठती है
सेंसर्ड पाकिस्तानी मीडिया को भी इस मासूम लड़की को तवज्जो देने की हिम्मत न थी अस्मां को भी इनसे कोई उम्मीद न थी न जरूरत,.....................
अस्मां अपने वालिद के साथ हुई नाइंसाफी को साबित करने करने की चुनौती देती हुई फौजी दहशत, बूटों, लठ से से लडती हुई सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गयी,
मर्दों का मुल्क एक लड़की की इस हिमाकत और हिम्मत से शर्मशार हो उठा और आखिरकार लोग धीरे धीरे उसके पीछे खड़े होने लगे कि पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने भी फौजी हुकूमत की दरींदगी के खिलाफ हिम्मत करते हुए अस्मां के वालीदान की बाइज्जत रिहाई का हुक्म दे दिया,
यह वाकया तब का है जब सन इकहत्तर की हार के बाद भुट्टो जैसे आवाम पसंद लिडरान को जनरल जिया की फौजी हुकूमत ने सरेआम फांसी पर लटका देना बेहद मामूली हरकत हुआ करती थी
यह अस्मां या उनके वालीदान जिलानी की जीत थी जी नही पाकिस्तान की मजलूम आवाम का हर तबका इसमें अपनी जीत समझने लगा यह मासूम सी लड़की ने लोगों मे उम्मीद जगा दी।
मरदाना जनाना के बीच लकीर हमेशा से रही लेकिन पाकिस्तान जैसे मुल्क मे जनानीयों के हालात का अंदाजा इतने से लगा सकते है कि एक तेरह साल की अंधी लड़की के साथ हैवानियत होती है उसकी आबरू के लुटेरे लोगों को पाकिस्तानी कोर्ट तमाम सबूत होने के बाद भी आँखों देखा गवाह न होने के कारण उल्टा लड़की को ही निकाह के पहले संबंध रखने का दोषी मान जेल भेज देती है
तब अस्मां इंसाफ दिलाने के लिए उस मासूम की आवाज बन जाती है और उन दरिंदों को सजा दिलवा के ही छोड़ती है
और यहीं से अस्मा पाकिस्तानी मजलूम खवातीनों की रहनुमा बन खड़ी होती हैं. पाकिस्तानी खवातीनो जनानीयों के इंसाफ, उनके हक हकूक की के लिए अस्मां लडती रही।
पाकिस्तानी मे मानवाधिकार आयोग की देन अस्मां की है और अस्मां जैसी खवातीन जिन परिस्थितियों अपनी और अपनी जात के लिए खड़ी हुई ऐसा उदाहरण पूरे दक्षिण एशियाई मुल्को शायद कोई न होगा।
भारतीय कैदी जाधव को वकील न देने के मामले हो या पाकिस्तानी हिन्दूओ की होती दुर्दशा पर पाकिस्तानी हुक्मरानो और फौज की पुरजोर मुखालफत करने की हिम्मत करने वाली अस्मां ही थी
पिछले हफ्तों अस्मां जहाँगीर नाम की यह जंगी आवाज छियासठ साल की उम्र मे चुप हो गयी जिसने पाकिस्तानी खवातीनों को हुक्मारानों के सामने अपनी आवाज उठाना सिखाया उसे ऊपर वाले ने अपने पास बुला लिया, एक खालीपन जिसे पाकिस्तानी शायद ही कभी भर पायें और पड़ोसी मुल्कों मे भी शायद ही ऐसी कोई आवाज हो।