NSG दुनिया के कुछ प्रमुख देशो का एक ऐसा संगठन जिसका का कोई स्थाई कार्यालय नहीं है। NSG आमतौर पर वार्षिक बैठक करता है सदस्य देशों में से कोई एक अध्यक्षता करता केवल वार्षिक तौर पे और सभी मामलों में फैसला सर्वसम्मति के आधार पर होता है
आरम्भ में इसके केवल सात सदस्य थे – कनाडा, पश्चिमी जर्मनी, फ्रान्स, जापान, सोवियत संघ, युनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका यह सभी देश यूरेनियम सप्लायर के तौर पे जाने जाते रहे है वस्तुतः भारत द्वारा 1974 में किये गए परमाणु परीक्षणों के बाद दुनिया भर में मचे हड़कम्प के बाद एनएसजी का गठन किया गया
यह समूह मुख्य रूप से केवल परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के साथ परमाणु आपूर्ति या व्यापार करता है जिसमे की केवल हथियार निर्माण पर प्रतिबन्ध होता है और विद्युत रिएक्टरों व् असैन्य आदि कार्यों के लिए ही उपयोग में लाया जा सकेगा,
इन सदस्य देशो में साबसे बाद में शामिल होने वालों में चीन रहा है भारत और चीन दोनो ने वर्ष 2004 में आवेदन किया था हालाँकि भारत को सदस्यता हेतु NPT के शर्तों पर सहमत होने पर सदस्यता का देने की बात कही गई थी लेकिन भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर से मना करदिया.
क्यों की फ्रांस आदि देशों ने NTP पर हस्ताक्षर किया ही नहीं और अमेरिका चीन हस्ताक्षर करने के बाद इसके प्रावधानों से सहमति नहीं रखते है और भारत इसपे हस्ताक्षर कर सभी प्रावधान मान लेता है तो भारत की परमाणु तकनिकी को स्वदेशी नहीं माना जायेगा
भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए यूरेनियम आयात व् आपूर्ति की बहुत ही आवश्यक है जिससे क्रूड ऑयल व् कोल पर निर्भरता कम होगी, यदि भारत को अगले चार सालों में उच्च विकास दर प्राप्त करना है तो चौबीस घंटे विद्युत सप्लाई देनी ही होगी है तो यूरेनियम सर्वसुलभ विकल्प है लेकिन इस बार इस समूह ने भारत को विशेष छूट देकर ऐतिहासिक फैसला किया है। जिसमे रूस की सरकार का बड़ा हाथ माना जाता है
हालाँकि भारत को चीन व् चार अन्य सदस्य देशों के विरोध के कारण सफलता नहीं मिली फिर भी भारत को कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता क्यों की इन अड़तालीस देशो के कुछ प्रमुख देश जैसे अमेरिका कनेडा जापान व् आस्ट्रेलिया ने भारत के साथ अलग से राष्ट्रीय यूरेनियम निर्यात की संधि कर रखा है ऐसा नहीं है की भारत में यूरेनियम नहीं पाया जाता, भारत के जादूगोड़ा में यूरेनियम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है किन्तु वहां की पर्यावरणीय समस्याओं व् आदिवासियों के रेहैबिटैशन की दिक्कतों के कारण सरकार के हाथ बंधे हुए है
इस संगठन में भारत के शामिल होने से भारत को सौ फीसदी तकनीकी व् परमाणु तत्व के हस्तानांतरण व् विनियन का अधिकार प्राप्त हो जायेगा जिसका विरोध तब कोई नहीं कर सकेगा, हालाँकि अमेरिकी सरकार के द्वारा यह दवा किया गया है की भारत वर्ष के अंत तक इस संगठन में शामिल कर लिया जायेगा जिससे साफ़ पता चलता है इस संगठन के सदस्य देशो में दरार पड़ चुकी है
इस दरार का सबसे बड़ा उदहारण यह है की भारत को MTCR ( छोटी दुरी के मिसाइल व् मिसाइल अवरोधक तकनिकी निर्यातक देशो का समूह) के पैंतीसवें सदस्य देश के रूप में शामिल कर लिया गया है यह वही संगठन है जिसमे चीन शामिल होने के लिए कई सालों से प्रयासरत है और उसे अभी तक सफलता नहीं मिली है
चीन भारतीय कूटनीति के चक्कर में फंस गया और इधर भारतीय प्रधानमंत्री और उनके सचिव एस शंकर सभी देशो को पुरे जोर शोर शराबे से मानाने की कोशिश लगे रहे की NSG के लिए समर्थन दे भारत को
उधर विदेशमंत्री व् सुरक्षा सलाहकार अजित MTCR के लिए गोपनीय ढंग से लॉबिंग करते रहे जिसमे चीन व् अन्य विरोधी देश नहीं है और चीन ने अपने भारत के NSG में न शामिल होने देने के विरोध की सारी ऊर्जा खपा बैठा रहा और सारा ध्यान NSG में ही लगा रहा, इधर भारत NSG से भी महत्वपूर्ण MTCR का निर्विरोध सदस्य बन गया, यह चीन की अब तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक हार है
मतलब यह हुआ की इस MTCR संगठन में चीन को शामिल होने के लिए वही मेहनत करनी होगी जोकि भारत ने NSG के लिए किया यानि की गेंद अबकी बार भारत के पाले में है