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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

इंसेफेलाइटीस= मस्तिष्क ज्वर के विशेषज्ञ

इंसेफेलाइटीस= मस्तिष्क ज्वर
निश्चित रूप से यह एक जानलेवा डीजीज है और अस्सी प्रतिशत बच्चे, किशोर ही इसके चपेट मे आते हैं जबकि गलती यह होती है कि रोगी का इलाज बाल रोग विशेषज्ञ से करवाया जाता है
मैंने ऐसे रोगी की तीमारदारी सेवा की है 
तब मैं लॉ फैकेल्टी छात्र था STD काल रेट तब  ढाई रुपये या ज्यादा हुआ करती थी और यहां अपनी गैंग दो दर्जन सेे ज्यादा की स्टुडेटंस की चलती थी पान पुकार चाय बाइक स्कूटर कमांडर साइकिल सब हुआ करते थे जिले  में कोई भी काम चुटकी मे करा दिया जाता था।
खैर तभी दूर के एक रिश्तेदार के यहां से बड़ी हाहाकारी सूचना मिली उनका 12-13 साल का बालक अचानक बेहोश हो गिर पड़ा पूरा बदन ऐंठ गया है सांसे बड़ी मंद चल रही है अब तब वाली हाल है
और डॉ बंगाली ने भी जवाब दे दिया है ब्लाक  PHC ने भी हाथ खड़े कर दिए सदर हॉस्पिटल में ही भर्ती करना होगा।
ध्यान देने योग्य यह बात है कि गांव नुक्कड़ बाजार वाले डॉक्टर बंगाली ने जवाब देदीया मने यह मान लिया जाता है कि It's have to less time for pass away
और यह बात मात्र कुछ ही घंटों मे पचास गाँव फैल चुकी होती है चौपाली चर्चा के लिए।
फिर किसी तरह लाया गया बालक को लेकिन सदर हॉस्पिटल मे वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ के छुट्टी पर होने के कारण हमने बच्चे को एक निजी नर्सिंग होम मे भर्ती करवाया।
नर्सिंग होम के बड़े डॉक्टर ने बाल रोग डॉक्टर को बुलावा भेज रखा था लेकिन उसके आने के पहले ही दुनिया भर के दसियो टेस्ट कराके  के घोषणा कर दिया कि बच्चे को मस्तिष्क ज्वर है मने  दिमागी बुखार जापानी बुखार अंग्रेजी मे बोले तो इंसेफलाइटिस।
बड़े डॉक्टर नेे लंबी गहरी सांस लेकर बताया कि बहुत ही टफ केस है फिफ्टी फिफ्टी के चांसेज हैं 
एड्स कैंसर के बाद यह दूसरा डरावना बीमारी का नाम हमने सुना था डरना वाजिब भी था रोगी मने बस मुर्दा या लाश ही जैसे होता है अंकडी हुई देंह ऐंठा हुआ शरीर, जिंदा होने का सबूत मात्र हल्की हल्की उखडी हुई सांसे चलना भर है जैसे अब तब फेफड़ों ने काम करना बंद ही किया मानो डर बना रहता है।
 उस बच्चे की तीमारदारी करते हुए मैंने एक खास बात नोट किया कि इंसेफलाइटीस के चपेट में ज्यादातर बच्चे ही आते है मच्छर व गंदगी मुख्य कारण है साथ ही प्रभावित क्षेत्र गोरखपुर के आसपास के दर्जन भर जिले है जिसमें सबसे ज्यादा मरीज सीमावर्ती बिहार से आते है और लगभग पचास प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक व अतिपिछडे समुदाय के मरीज होते हैं जिसमें कि प्रारंभिक इलाज गांव के अनट्रेंड ननस्पेशलिस्ट डॉक्टर से करवा के केस को क्रिटीकल बना देने के बाद बड़े हॉस्पिटल मे लाते हैं परिजन।
दुसरी गलती यह होती की इंसेफलाइटीस के बाल मरीजों का इलाज बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से ही करवाना होता है।
बाल रोग में कुल मिलाकर लगभग ढेढ दर्जन बीमारियाँ होती है जिसमें कि डॉयरीया हैजा कॉलरा सूखा रोग खांसी न्युमोनिया पिलीया हेपेटाइटिस आदि ही बड़े खतरनाक व जानलेवा माने जाते है, और बल रोग विशेषज्ञ इसी मे महारती होते हैं। 
जबकि मस्तिष्क ज्वर एक भिन्न प्रकार का है जो सीधे बालक या मानव के न्युरो सिस्टम पर अटैक कर पूरे नर्व को पंगु बना देता है मने मानवीय तंत्रीका तंत्र व मस्तिष्क को सेंस लेस कर देता है मेरे विचार से जब मामला न्यूरो से संबंधित है या हो, तो वहां बाल रोग विशेषज्ञ कितना हाथ पांव मार सकेंगे या बाल रोग विशेषज्ञ इलाज करते है इंसेफलाइटीस का तो पैसे बनाना उद्देश्य हो या फिर मजबूरन कि न्यूरो स्पेशलिस्ट के न होने पर प्रयोग करना ही पडे यह मान लेते है। मने कुल मिला कर बाल रोग विशेषज्ञ होने के नाते दिमागी बुखार के देशी नाम जैसे सरल लगने वाले रोग इलाज करना है जो कि वह होता नही है।
दिमागी बुखार का इलाज मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ न्यूरो स्पेशलिस्ट द्वारा संभव है न कि किसी बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा यदि कोई ऐसा करता है तो दो ही सूरत होगी एक मरीज को भगवान भरोसे छोड़ दिया या फिर न्यूरो स्पेशलिस्ट का न होना।
उप्र के अस्सी जिलों में सरकारी प्राइवेट अस्पतालों में कुल मिलाकर अनुमानित लगभग चालीस या इससे भी कम न्यूरो विशेषज्ञ डॉक्टर होंगे, बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर तो एक ही जिले मे चालीस मिल जाएंगे। और जैसे स्थिति गोरखपुर में मरीजों की है वहाँ तो लगभग ढेेढ दर्जन न्यूरो स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की जरूरत जान पड़ती है पता नही सरकारी मशीनरी ने बीसीयों साल से इस मामले पर ध्यान क्यों नही दिया या रिसर्च टीम ने ऐसी संस्तुती क्यों नही की किस तरह के रोग के लिए कैसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता है।
खैर मैंने सिर्फ इस लिए बताया है कि मैंने ऐसे रोगी को दो हफ्ते के अंदर ठीक होते देखा है जिसमें की न्युरो सर्जन की सेवाएं ली गयी थी जहाँ मैंरे खुद की आंखों देखी घटना है जिसकी मैंने तीमारदारी की है आज वो लौंडा बरोबर गबरू जवान है एक बच्चे का बाप है लेकिन इस रोग से ठीक होने पर एक इफेक्ट यह होता है कि शरीर का कोई एक अंग कुछ नही तो हेयर क्रेक जैसे ही सही कुछ तो डिफेक्ट ले ही आता है
फिलहाल सावधान रहे सुरक्षित रहे और जागरूकता लायें। भुक्तभोगी जनता न्युरो स्पेशलिस्ट पैदा होने का इंतजार करे।