Modi Gain Once Again या Modi never again
एक व्यंगात्मक समीक्षा
मोदी फिर क्यों या कोई और नया क्यों
क्योंकि ये वो उनके जैसे है
भारत मे इस पद के लिए कमोबेस तुलना के लिए मात्र दो ही मापदंड है नेहरू व इंदिरा, गाहेबगाहे मोदी की तुलना इन दोनो पुर्व प्रधानमंत्रीयों से होती रहती है साथ ही विपक्ष के भी एक नेत्री की तुलना मात्र चेहरे के कारण इंदिरा से होती है कहने का अर्थ है कि एक धारणा स्थापित करने का प्रयास है कि उपरोक्त पुर्व प्रधानमंत्रीयों के जैसा जो होगा वही देश का पीएम बन सकता है
हालांकि किसी के लिए भी यह तुलना अब के समय मे बेमानी सी है
यदि मोदी की बात करें तो धार्मिक व राजनैतिक दृष्टिकोण से इनकी तुलना सिर्फ पुरातन भारतीय संतों और कुछकुछ अटलजी व सरदार पटेल से हो सकती है।...
इसके पीछे तर्क यह है कि जैसे पुरातन भारतीय संतों ने कभी खुल के धर्म प्रचार नही किया बल्कि उसकी जगह धर्मीक स्थलों के दर्शन प्रवचन व धर्म के विभिन्न अनुष्ठानों क्रियाकलापों से धर्मविमुख जनता को आकर्षित व प्रेरित किया
दुशरे इनका योगदान ये कि भारत पता नही कैसे उनके रहते भर में बहुत हद तक सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंध गया जिस प्रकार सरदार पटेल ने भौगोलिक रूप से भारत को एक सुत्र में किया और इसके साथ ही अटल जी ने जैसे भारत को विपन्न आर्थिक कठिनाईयों से उबारा व देश को सैन्य शक्ति के रूप स्थापित किया वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक व सामाजिक रुप से भारत को एक किया जैसे GST, रोमिंग फ्री व कॉल रेट आश्चर्यजनक रूप से कम करना, नीति आयोग गठित करना, सर्जीकल स्ट्राइक, कश्मिर मे सेना को खुली छूट, भारत को बाहर से नौसैनिक अड्डे बना के घेरना आदि इस तरह के उन्होंने अनेकानेक ऐसे काम किये जो सैनिक व आर्थिक रूप से भी भारत को एक बनाता है।
बहरहाल मोदी को वोट कौन लोग और क्यो नही देंगे उसका एक मात्र कारण है नोटबन्दी
जिसका सबसे बड़ा नुकसान जिधर मोडीसाहब का ध्यान ही नही गया वो ये कि बडे सरकारी औहदे वाले अफसरो का नोटबन्दी के दौरान अपनी काली कमाई के नोटो को बदलवाने या ठीकाने लगाने के लिए दर दर भटकना पडा जिस घाट कभी न गये रहे उस घाट तक का पानी पीना पडा था किंतु इस बंदी में आम जनता व व्यापारीयों को कतई कोइ नुकसान नही हुआ और दुशरे नोटबंदी के बाद वाले है
नोटों की आकार व रंग की समस्या ने आम आदमी के मन मे खवामखा डर बढ़ा दिया ..
यदि कोई थोड़े से रुपये भी इकठे कर के गिने तो 500 का नया नोट पुराने 100 के नोट में घुस जाता है ,
200 वाला बीस के जैसे और ये समझ में ही नही आता कि 100 के आगे लगाए या पीछे
पचास का नया नोट .. 5 के नोट की फील देता है
हां किंतु100 का नया ब्लू वाला डिफरेंट है तो यूँ लगता है जैसे क्या आपके नंजन पेस्ट मे नमक नींबू अदरक है
और इनसब कठिनाईयों से निजात पाने के बाद यदि भूल से गफलत में पांच देने की जगह पचास दे दिये बीस की जगह दो सौ की नोट व सौ की जगह पांच सौ की नोट तो ऐसे हुए नुकसान वाले तो मोदी के नाम पे कतई भोट नही देने वाले
बाकी देश भर मे लोग वंस अगेन तो रटे ही रहे है जय हिंद कहतेे हुए।
एक व्यंगात्मक समीक्षा
मोदी फिर क्यों या कोई और नया क्यों
क्योंकि ये वो उनके जैसे है
भारत मे इस पद के लिए कमोबेस तुलना के लिए मात्र दो ही मापदंड है नेहरू व इंदिरा, गाहेबगाहे मोदी की तुलना इन दोनो पुर्व प्रधानमंत्रीयों से होती रहती है साथ ही विपक्ष के भी एक नेत्री की तुलना मात्र चेहरे के कारण इंदिरा से होती है कहने का अर्थ है कि एक धारणा स्थापित करने का प्रयास है कि उपरोक्त पुर्व प्रधानमंत्रीयों के जैसा जो होगा वही देश का पीएम बन सकता है
हालांकि किसी के लिए भी यह तुलना अब के समय मे बेमानी सी है
यदि मोदी की बात करें तो धार्मिक व राजनैतिक दृष्टिकोण से इनकी तुलना सिर्फ पुरातन भारतीय संतों और कुछकुछ अटलजी व सरदार पटेल से हो सकती है।...
इसके पीछे तर्क यह है कि जैसे पुरातन भारतीय संतों ने कभी खुल के धर्म प्रचार नही किया बल्कि उसकी जगह धर्मीक स्थलों के दर्शन प्रवचन व धर्म के विभिन्न अनुष्ठानों क्रियाकलापों से धर्मविमुख जनता को आकर्षित व प्रेरित किया
दुशरे इनका योगदान ये कि भारत पता नही कैसे उनके रहते भर में बहुत हद तक सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंध गया जिस प्रकार सरदार पटेल ने भौगोलिक रूप से भारत को एक सुत्र में किया और इसके साथ ही अटल जी ने जैसे भारत को विपन्न आर्थिक कठिनाईयों से उबारा व देश को सैन्य शक्ति के रूप स्थापित किया वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक व सामाजिक रुप से भारत को एक किया जैसे GST, रोमिंग फ्री व कॉल रेट आश्चर्यजनक रूप से कम करना, नीति आयोग गठित करना, सर्जीकल स्ट्राइक, कश्मिर मे सेना को खुली छूट, भारत को बाहर से नौसैनिक अड्डे बना के घेरना आदि इस तरह के उन्होंने अनेकानेक ऐसे काम किये जो सैनिक व आर्थिक रूप से भी भारत को एक बनाता है।
बहरहाल मोदी को वोट कौन लोग और क्यो नही देंगे उसका एक मात्र कारण है नोटबन्दी
जिसका सबसे बड़ा नुकसान जिधर मोडीसाहब का ध्यान ही नही गया वो ये कि बडे सरकारी औहदे वाले अफसरो का नोटबन्दी के दौरान अपनी काली कमाई के नोटो को बदलवाने या ठीकाने लगाने के लिए दर दर भटकना पडा जिस घाट कभी न गये रहे उस घाट तक का पानी पीना पडा था किंतु इस बंदी में आम जनता व व्यापारीयों को कतई कोइ नुकसान नही हुआ और दुशरे नोटबंदी के बाद वाले है
नोटों की आकार व रंग की समस्या ने आम आदमी के मन मे खवामखा डर बढ़ा दिया ..
यदि कोई थोड़े से रुपये भी इकठे कर के गिने तो 500 का नया नोट पुराने 100 के नोट में घुस जाता है ,
200 वाला बीस के जैसे और ये समझ में ही नही आता कि 100 के आगे लगाए या पीछे
पचास का नया नोट .. 5 के नोट की फील देता है
हां किंतु100 का नया ब्लू वाला डिफरेंट है तो यूँ लगता है जैसे क्या आपके नंजन पेस्ट मे नमक नींबू अदरक है
और इनसब कठिनाईयों से निजात पाने के बाद यदि भूल से गफलत में पांच देने की जगह पचास दे दिये बीस की जगह दो सौ की नोट व सौ की जगह पांच सौ की नोट तो ऐसे हुए नुकसान वाले तो मोदी के नाम पे कतई भोट नही देने वाले
बाकी देश भर मे लोग वंस अगेन तो रटे ही रहे है जय हिंद कहतेे हुए।