ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 18 फ़रवरी 2018

नरेन्द्र भाई और सोनी जी एक व्यंग्य कथनांक

घटनांक- सोनी पीएम नरेनदर  से थोड़ी दूर ''संसद कैंटीन'' में बैठी थी . 
तभी वहां उनके जमाने का उनका ''पुराना भीट्ट मंत्री '' चीडूबरम आ गया !
लेकिन नरेनदर को देख सकपकाया
लेकिन सोनी ने कडक के पूछा-- क्या आप '' निरव माल्या'' की बुक Fly to London लाये हो ?

चीडूबरम ने डर के कहा -- नहीं मैं तो ' कार्ती चिडूबरम''' की Now where should i go किताब लेने आया हूँ !

सोनी -- नहीं मेरे पास तो '' सुबरामणयम'' की How Held in Herold है

चीडूबरम रूंआसे हो बोले -- ठीक है तब तुम आते समय '' रोबरेट भादरा'' की call u when we jail लेती आना !

सोनी -- ok लेकिन तब मैं '' सिब्बल और सिँधवी '' की Bail in zero loss by making Judge in Hi court जरूर लेती आउंगी !

चीडूबरम मुँह लटका नरेन भाई को नमस्कार करके चला जाता है ! जो दोनों की बातें बड़ी देर से सुन रहे थे।

फिर नरेनदर भाई बोले सोनी जी से -- राजमाटा  ये लड़का इतनी ''ढ़ेर सारी'' किताबे पढ़ कैसे लेता है ? मुझे तो इतनी अंग्रेजी नही आती।

सोनी -- जी ये हमारी टीम का सबसे समझदार और intelligent लड़का है !

नरेन भाई -- तो मैडम इसको कहना एक बार ''मोहन भगत'' की 👉🏿न खाऊगा न खाने दूंगा
जिस ने खाया उसे पचाने भी न दूंगा👈
हिंदी मे है ये भी पढ़ ले ! .....

😂🤣😂🤣

चूहों से प्रेम भला कौन करे

चूहो से भला कौन प्रेम करता है किसान का सबसे बड़ा नुकसान यही करते है 
बचपन मे हम चार पाँच या ज्यादा  बालकों की गैंग रही और गर्मी की छुट्टियों मे पलिहर (गेंहू कटने के बाद का खेत) के छुट्टा सांड हो जाते थे।
गैंग मे दो बहुत ही जानकार बालक भी थे खैर एक साल गांव के पास की बाजार मे एक पर्दे वाला नया सनिमा हॉल खुला लेकिन वो XXX वाली फिल्मों के लिए बदनाम हो चुका था विरोध भी होने लगा था हॉल वालों का ऐसी फिल्म लगने का तो वे दिन मे साफ सुथरी पुरानी फिल्में दिखाने लगे................. 
सो घर से फिल्म देखने के लिए पैसे माँगने का मतलब संसद मे रेणु आ चौधुरी बन जाना, थोबडे शक्ति कपूर लगने लगते और किसी किसी के साथ तो ऐसा होता कि भेलेंटाइन के दिन प्रेम प्रपंच करते हुए बजरंग दल के हत्थे चढ़ जाना जैसी हालत। 
अब पैसे का जुगाड कैसे हो क्योंकि टिकट तीन रुपया साइकल जमा के पचास पैसे और समोसा के पचास कुल कम से कम चार से पाँच रुपए का खर्च।
इस खर्च को निकालने का उपाय बताया गैंग उन दो जानकार बालकों ने कैसे कि 
गुरु थोड़ी मेहनत लगेगी सब मेहनत करेंगे तो रोज फिल्में देख सकते है 
हम लोगों ने कहा चलो तैयार है तो वो हमें गेंहु कट चुके खाली खेत मे ले गया और एक बिल के पास खड़ा हुआ, फिर उस बिल मे एक डंडा डाला हम लोग रोकने लगे अबे चिरकुट सांप होगा वो बोला महाराज इ मूस (चुहा) कै बिल है 
फिर बिल से थोड़ा हटकर आस पास पैर हल्के से पटके कभी डंडे को खाली खेत की जमीन को पिटता कुल दस मिनट बाद जितने गैंग के सदस्य होते उतने ही जगह पर खेत मे निसान लगा देता और कहता कि इस जगह पर  बस एक आध बित्ता ( पांच से तीन इंच के मध्य) खुदाई करना, सब यही करते।
दो तीन मिनट की खुदाई के बाद एक से डेढ़ फुट के चैम्बर मिलते जिसमें कि दो चार किलो शुद्ध साफ चमकता हुआ गेंहू मिला करता था। अब हम लोग इस गेंहू को बनिये की दुकान पर बेच कर हम पुरी गर्मी भर फिल्में देखा करते थे .................
एक बार पता लगा कि सनम बेवफा फिल्म लगाने वाली है हम सारे गैंग के लड़के बड़े उत्साह से  खेतों की ओर निकल पड़े लेकिन नसीब ही बेवफा  निकली खेतों मे किसानों ने सुबहे सवेरे पानी भर दिया था चुहे बिलों से निकल कर भाग रहे थे कि चील कौवे उन चूहों के शिकार कर लेते।
उस दिन हमारे कलेजे पर सांप नही नही अजगर जैसे लोट रहा हो मानो कोई सिने पर मूंग दल रहा हो बिना किसी के थप्पड मारे चेहरा लाल हुआ जा रहा था बस हम लोग रो न सके थे बाकी सारी दुर्दशा हो चुकी थी अब अय्यासी कहा से कैसे होगी, 
हाय हमारे प्यारे चुहे।
मुफ्त के पैसे न होने से कैसी हालत हो जाती है इस कहानी का वर्तमान राजनीतिक घटनाओं से कोई संबंध नही है।

New consumer protection amendments act 2017 ,उपभोक्ता संरक्षण संशोधन एक्ट 2017

आजकल के हालात भी बस युं ही से बड़े कृटीकल है कई विद्वानों का मानना है कि मोदी जी ..........मने भारत मे प्रधानमंत्री के पद का नाम मोदी जी है जब से बैंकों के NPA का राज उजागर किया तभीए से अंबानी परिवार के रिश्तेदार  निरब मोदी के पंजाब बैंक घोटाले का पता लगा ।
जबकि इसके पहले एक घटना यह थी जिसके बारे मे देश के लोग बहुत कम जानते हो वो यह है कि संसद ने उपभोक्ता संरक्षण एक्ट 1986 के जगह पर नया संशोधन एक्ट 2017 संसद मे पेस कर दिया, यह उत्पादकों व सेवा प्रदाताओ के लिए पहले की तुलना में बिना छिला हुआ बांस जैसे है
तत्कालीन 86 के उपभोक्ता एक्ट का मसौदा कुछ ऐसा था कि मध्यस्थता व सुलह समझौते के आसपास ही समझा जाए। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट व संसद ने समय समय पर इसकी व्याख्या व संशोधन करते रहे पहला बड़ा बदलाव 93-94 में हुआ जब संसद ने बैंक, परिवहन, बीमा, होटल, डॉक्टर, सिविल कंट्रैक्टर, आदि को उपभोक्ता संरक्षण एक्ट के दायरे मे ला दिया, लेकिन स्थिति मे कोई विशेष. सुधार नही हुआ क्योंकि कानून तो बना लेकिन उपभोक्ता अदालतों के पास निर्णय देने का अधिकार दिया गया किन्तु निर्णयों को लागू करवाने के लिए सिविल जज के जैसे अधिकार नही दिए। अतः बड़े व्यवसायियों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ
  विक्रेताओं व उपरोक्त सेवा प्रदाताओं की मनमानी चलती रही, ये लोग उपभोक्ता अदालतों को इग्नोर करते करते मामला यहाँ तक पहुँचा कि कुछ संगठनों ने इस एक्ट के निरसन हेतु खत्म कराने के नियत से इसके वैधता को चुनौती दे डाली कि संसद को सिविल कोर्ट के समकक्ष कोई नई अदालतों के गठन का अधिकार नही है ..............लेकिन वर्ष 2002 में अटल जी के प्रधानमंत्री रहते उपभोक्ता अदालतों को अपने निर्णय का पालन करवाने के लिए सिविल मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ दे दी गयी साथ जनता को जागरूक करने के लिए व्यापक प्रचार भी किए गये। हालाँकि सरकार का यह क्रांतिकारी कदम था किन्तु अब भारत अब डिजिटल होने लगा था जिसके कारण उपभोक्ता अदालतों का अस्तित्व ही नगण्य सा होने लगा। कारण व्यापार करने के तरीके में अमूल चूल परिवर्तन आरंभ होना शुरू हो गया जैसे ई मार्केटिंग, ऑनलाइन शॉपिंग मे गारंटी वारंटी न प्रदान करना, बड़े नामी चेहरे से उत्पादों का विज्ञापन हिडेन क्लाज के साथ, पीड़ित उपभोक्ता के लिए निर्माता या विक्रेता के कार्य स्थल पर ही केस करने की बाध्यता, अदालतों को स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार न होना आदि।
इन सब का प्रकार के अनैतिक कार्यविधियों का निराकरण उपभोक्ता संरक्षण संशोधन एक्ट 2017 मे वर्तमान सरकार द्वारा संसद में पेश किए गये है अब कोई भी निर्माता, विक्रेता, सेवा प्रदाता उपभोक्ता को चुना लगा अपनी जिम्मेदारी से भाग नही सकता, और बैंक को भी अपने ग्राहकों इनवेस्टरों को जवाब देना होगा कि उनके पैसे किसको दे रखे हैं।
अभी बहुत से निरब मोदी और मेहता दिखने वाले है