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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

Hindu सनातनी उदारवादी युद्ध प्रेमी क्यों है

मुंगेरीया या फरीदबाद कांड के संदर्भ मे 
असल में मामला धृष्टता पुर्वक उदारता स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को नकारने वालों के लिए चेतावनी है 
कांड के प्रयोग का विषय वस्तु यह है कि लोगों मे विचारधारा यह है कि जातियों व क्षेत्रीय व्यवस्था में बंटा हिंदू उदारवादी ही होता है किंतु इस विषय पर लोगो में यह भ्रांति मात्र है, यह उदारता मात्र केवल अन्य समुदायों को शांतिपूर्ण सह अस्तित्व एवं समायोजन के लिए अवसर देने के समय मात्र भर है,
वैसे तो पूरे संसार में सबसे लड़ाकू और अब युद्ध प्रिय जाति केवल भारत में बसती है और भारतीयों में विशेषकर हिंदू या सनातन मूल धर्मावलंबी है क्योंकि समग्र युद्ध को एक आनंद विषय समझा जाता है न कि उन्माद का,
जैसा कि उपोक्त कथन अतिशयोक्ति लगती होगी तो बस इतना समझ लीजिए कहीं आप मारपीट या बवाल हो रहा तो लोग भीड़ लगाकर के तमाशा देखने को जुट जाते हैं व मारपीट करने वाले संबंधित व्यक्तियों का उत्साह वर्धन भी करते हैं यह सब इनकी जींसीए गुणसूत्र में बसा गुंण है, कथित तौर पर देखें तो आजके कुलडूड टाइप के लड़के या पुरातन लोग भी फिल्में अगर देखते हैं तो वही पसंद है वही फिल्में हिट भी होती हैं जिनमें एक्शन मारपीट का तड़का हो
 और इसी को मात्र आधार माने तो सत्य प्रतीत होता है कि यदि हिंदू हिंसा में विश्वास नही करते तो आज अस्तित्व में नही होते, 
प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई एरा के पूर्व सब लोगों को याद होगा कि लोग एक एक इंच खेत के पगडंडी के लिए बर्षो तक खानदानी दुश्मनी खून खराबा करते थे, अटल एरा में विभाजन करने का अर्थ है यह कि उन के आगमन के बाद उन्होंने लोगों को व्यापार निर्माण अभियंत्रण सेवाओं की तरफ लोगो को आकर्षित किया जिससे सनतनी समाज के लोग इन सेवाओं की तरफ आकर्षित होकर के इसमें अपने आप को एडजस्ट करके धनसंपदा सम्मान कमाने की लालसा में जुट गए/
यही हिंसा प्रियता न होने से जाने कितनी सभ्यताएं नगरीकरण जैसे सुमेरियन, मेसोपोटामिया, रोमन आज नष्ट हो गये है क्योकिं उनके अंदर युद्ध प्रियता तो कमोबेस थी लेकिन युद्ध, हिंसा व शांति मे समायोजन की अनुकूलता नही थी।
अतएव हिंदू उदारमना तो कतई नहीं होते है बल्कि हजारों वर्षो के सभ्यतागत विकास में सनातनी समाज ने हर विषय की अनुकूलता सीखी है 
आप संसार का इतिहास उठाकर देख सकते हैं हिंसक समुदाय है तो वह भी नहीं बचा है अहिंसक समुदाय भी नहीं बचा है हिंसक अहिंसक सभी नष्ट होंगे, किंतु जो समुदाय इन दोनों से सामंजस्य बैठा या बना लिया है वही जीवित रहा है, सनातनी समाज ने सामनजस्य कैसे किया क्योकि कि यदि इनके पास बुद्ध है तो स्कंदगुप्त भी है गांधी है तो आजाद और बोस भी हैं 
यदि सनातनी समाज उदारमना होते तो न गंगा बचती न किसी की राख तक बचती,
दुसरी बात यह कि सनातनीयों मे पुनर्जन्म के सिद्धांत की मान्यता,  जिससे युनानी, हूण, मंगोल, तुर्क, मुगल, अंग्रेज आदि सभी के हमले उत्पात सब कुछ झेल गए साथ कठोर प्रतिकार भी किया बाकी संसार तबाह होगया क्योकि सनातनी मानते हैकि आत्मा अमर है तो यह सतत संघर्ष है युद्धघोष है, पुनर्जन्म है तो युद्ध की निरंतरता है
अन्तत: सनातनी समाज ने इनसब को अपने धर्म दर्शन से जोडकर यह सिद्धांत विकसित कर लिया कि कैसे हम प्रकृति व जीव के साथ तारतम्य बनाएं जिससे किसी भी परिवर्तन का सामना कर सकें,,                                                                                        सभ्यतागत विकास में उन सबका उपयोग करना सिखा है जो परिवर्तित हो रहे है। यदि कोई वस्तु सनाती समाज के लिए उपयोगी नहीं है या उनको हानि पहुंचा रही तो उससे पीछा छुड़ाना और उसको पुर्णतया नष्ट करना भी बखूबी जानते हैं 
निश्चित रूप से वर्तमान सनातन समाज व राष्ट्र के लिए संक्रमण काल के जैसे है फिर भी सामंजस्य के नियम का पालन हो रहा है बस शिशुपाल की वह सौवीं गलती तक सनातनी समाज चुप रहेगा,                         
यदि सनातन समाज से कुछ दुनिया को सीखना है तो सामंजस्य अनुकूलता सीखे। शांति, अहिंसा, उदारता सब मात्र सहयोगी तथ्य हैं।
यह राष्ट्र अक्षुण्ण रहे, सनातन धर्म और इस देश की सांस्कृतिक परंपराएं अमर रहें... कामना है