कोरोना वैश्विक महामारी के पश्चात का समय डार्विन के योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत पर आधारित प्रकरण जैसे होगा, योग्यतम उत्तरजीवी वही होगा जो संघर्ष करेगा।
IMF के अनुसार यूरोजोन व विश्व अर्थव्यवस्था बहुत ही खतरनाक हालत मे जाने वाली है ब्रिटेन यूरो जोन से निकल चुका है और गर ग्रीस यूरो क्षेत्र से बाहर निकल जाता है पूरे ग्रुप के सारे देशों के टूट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योकि ग्रीस, स्पेन पुर्तगाल, इटली,जर्मनी की अर्थव्यवस्था संकट में है इन सभी देशों का बजट घाटा 15% से अधिक है जो मान्य यूरो सीमा के 4 गुना से भी ज्यादा है कोरोना क्रॉनिक एपीडेमिक डिजीज के इस संकटकाल के बाद यह घाटा और भी बढ़ने की संभावना है असल में फुटबॉल वर्ल्ड कप और ओलंपिक खेलों की वजह से यूरोप में बहुत अच्छी खासी आर्थीक तबाही देखने को मिली जिसके बाद इन देशों में बेरोजगारी की दर 20% के लगभग होगयी, यह और भी बेतहाशा बढ़ सकती है प्रथम विश्व युद्ध के बाद की डबल डिप रिसेशन से संभावना जैसे है
यदि चीन को छोड़ दिया जाए तो सभी देशों में उत्पादन गिरा है यूरोपीय देशों में पिछले दिनों से ही लोगों के वेतन वृद्धि में रोक लगा दी गई है जिससे कर्मचारियों ने हड़ताल की चेतावनी दे रखी थी किंतु करोना संकट की वजह से हड़ताल टल गई है फिर भी ट्रेड यूनियन के नेताओं का कहना है कि बीते वर्षों में यहां की व्यापारियों ने खूब मुनाफे कमाए हैं और अर्थव्यवस्था को बचाने में योगदान नहीं देना चाहते हैं तो सरकारों का उन पर शिकंजा कसा जाना चाहिए।
तो इस वैश्विक महामारी से निपटने के पश्चात संसार भर के विकसित देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने में लग जायेगें, यह स्पष्ट है कि बेरोजगारी किसी हद तक भले ही ना बढ़ेगी किंतु उन राष्ट्रों के स्थानीय एवं बाहरी लोगों में संघर्ष होना अवश्यंभावी दिख रहा है स्थानीय लोग रोजगार में किसी भी तरह का बंटवारा नहीं चाहेंगे, तो एक प्रकार से सस्ते प्रवासी कामगारो के लिए समस्या खड़ी होती दिख रही है फिर भी प्रवासी तो अपने स्वदेश लौट जाएंगे किंतु शरणार्थियों के लिए विकट स्थिति है योरोपिय देशों मैं आए हाल-फिलहाल मध्य एशियाई शरणार्थियों से स्थानीय विकसित देशों के लोगों का संघर्ष स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है,
यह संघर्ष दुनिया भर के सभी देशों में राष्ट्रवादी भावना के उभार का समय होगा, जब यह संघर्ष होगा तो दुनिया भर की सरकारें अपने राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों से कोई तनाव नहीं चाहेगी, भले ही वह लोकतांत्रिक देश हो, किंतु विपक्ष के लोग भी कोई ऐसी बातों का समर्थन नहीं करेंगे जिससे राष्ट्रवादी भावनाओं को कष्ट हो, और इस बात का लाभ लेते हुए सत्ताधारी दल और सरकारें अपने राष्ट्र व प्रदेश में चुनाव कम से कम 10 या 15 साल के लिए या आगामी दो तीन चुनाव टाल देंगे, इसमें विपक्षी दलों का भी समर्थन प्राप्त होने की संभावना है क्योंकि राष्ट्रवादियों के खिलाफ जाने का साहस शायद ही कोई दल या संगठन कर पाए।
कोरोना के बाद भारत की स्थिति
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने आने वाले दिनों के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अनुमान साझा किया है, हालांकि उन्होंने जो भी बातें बताइए कुछ नयी नहीं रही है विश्व के अन्य अर्थशास्त्रियों, सरकारें एवं बैंकर्स ने भी ऐसा ही व्यक्त किया है
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दरें ऐतिहासिक रूप से घटाएं हैं हालांकि इसकी एवज में उन्होंने कर्ज मे कुछ राहत देने का फैसला किया है साथ ही कुछ बैंकों को अलग से सहायता देने का भी प्रावधान किया हुआ है फिर भी आने वाले समय में जैसा कि प्रतीत होता है भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी आसानी से नहीं उठ खड़ी होने वाली है भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल स्तंभ भारतीय कृषि है कृषि आधारित देश होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था ग्रामीणों द्वारा पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण संभाल ली जा सकने की स्थिति में होगी यदि सरकारों द्वारा कोई अन्या अन्य कर आरोपित न करके कृषको और ग्रामीणों को भरपूर सहायता करने की योजनाओं को फलीभूत करना चाहिए, दुनिया भर की महानगरीय व्यवस्थाओं कमीयां स्पष्ट हो गयी है उनका पतन देखा जा रहा है केवल वही क्षेत्र सुरक्षित हैं जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि का उत्तरेष्ठ है
IMF के अनुसार यूरोजोन व विश्व अर्थव्यवस्था बहुत ही खतरनाक हालत मे जाने वाली है ब्रिटेन यूरो जोन से निकल चुका है और गर ग्रीस यूरो क्षेत्र से बाहर निकल जाता है पूरे ग्रुप के सारे देशों के टूट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योकि ग्रीस, स्पेन पुर्तगाल, इटली,जर्मनी की अर्थव्यवस्था संकट में है इन सभी देशों का बजट घाटा 15% से अधिक है जो मान्य यूरो सीमा के 4 गुना से भी ज्यादा है कोरोना क्रॉनिक एपीडेमिक डिजीज के इस संकटकाल के बाद यह घाटा और भी बढ़ने की संभावना है असल में फुटबॉल वर्ल्ड कप और ओलंपिक खेलों की वजह से यूरोप में बहुत अच्छी खासी आर्थीक तबाही देखने को मिली जिसके बाद इन देशों में बेरोजगारी की दर 20% के लगभग होगयी, यह और भी बेतहाशा बढ़ सकती है प्रथम विश्व युद्ध के बाद की डबल डिप रिसेशन से संभावना जैसे है
यदि चीन को छोड़ दिया जाए तो सभी देशों में उत्पादन गिरा है यूरोपीय देशों में पिछले दिनों से ही लोगों के वेतन वृद्धि में रोक लगा दी गई है जिससे कर्मचारियों ने हड़ताल की चेतावनी दे रखी थी किंतु करोना संकट की वजह से हड़ताल टल गई है फिर भी ट्रेड यूनियन के नेताओं का कहना है कि बीते वर्षों में यहां की व्यापारियों ने खूब मुनाफे कमाए हैं और अर्थव्यवस्था को बचाने में योगदान नहीं देना चाहते हैं तो सरकारों का उन पर शिकंजा कसा जाना चाहिए।
तो इस वैश्विक महामारी से निपटने के पश्चात संसार भर के विकसित देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने में लग जायेगें, यह स्पष्ट है कि बेरोजगारी किसी हद तक भले ही ना बढ़ेगी किंतु उन राष्ट्रों के स्थानीय एवं बाहरी लोगों में संघर्ष होना अवश्यंभावी दिख रहा है स्थानीय लोग रोजगार में किसी भी तरह का बंटवारा नहीं चाहेंगे, तो एक प्रकार से सस्ते प्रवासी कामगारो के लिए समस्या खड़ी होती दिख रही है फिर भी प्रवासी तो अपने स्वदेश लौट जाएंगे किंतु शरणार्थियों के लिए विकट स्थिति है योरोपिय देशों मैं आए हाल-फिलहाल मध्य एशियाई शरणार्थियों से स्थानीय विकसित देशों के लोगों का संघर्ष स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है,
यह संघर्ष दुनिया भर के सभी देशों में राष्ट्रवादी भावना के उभार का समय होगा, जब यह संघर्ष होगा तो दुनिया भर की सरकारें अपने राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों से कोई तनाव नहीं चाहेगी, भले ही वह लोकतांत्रिक देश हो, किंतु विपक्ष के लोग भी कोई ऐसी बातों का समर्थन नहीं करेंगे जिससे राष्ट्रवादी भावनाओं को कष्ट हो, और इस बात का लाभ लेते हुए सत्ताधारी दल और सरकारें अपने राष्ट्र व प्रदेश में चुनाव कम से कम 10 या 15 साल के लिए या आगामी दो तीन चुनाव टाल देंगे, इसमें विपक्षी दलों का भी समर्थन प्राप्त होने की संभावना है क्योंकि राष्ट्रवादियों के खिलाफ जाने का साहस शायद ही कोई दल या संगठन कर पाए।
कोरोना के बाद भारत की स्थिति
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने आने वाले दिनों के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अनुमान साझा किया है, हालांकि उन्होंने जो भी बातें बताइए कुछ नयी नहीं रही है विश्व के अन्य अर्थशास्त्रियों, सरकारें एवं बैंकर्स ने भी ऐसा ही व्यक्त किया है
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दरें ऐतिहासिक रूप से घटाएं हैं हालांकि इसकी एवज में उन्होंने कर्ज मे कुछ राहत देने का फैसला किया है साथ ही कुछ बैंकों को अलग से सहायता देने का भी प्रावधान किया हुआ है फिर भी आने वाले समय में जैसा कि प्रतीत होता है भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी आसानी से नहीं उठ खड़ी होने वाली है भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल स्तंभ भारतीय कृषि है कृषि आधारित देश होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था ग्रामीणों द्वारा पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण संभाल ली जा सकने की स्थिति में होगी यदि सरकारों द्वारा कोई अन्या अन्य कर आरोपित न करके कृषको और ग्रामीणों को भरपूर सहायता करने की योजनाओं को फलीभूत करना चाहिए, दुनिया भर की महानगरीय व्यवस्थाओं कमीयां स्पष्ट हो गयी है उनका पतन देखा जा रहा है केवल वही क्षेत्र सुरक्षित हैं जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि का उत्तरेष्ठ है