HIV AIDS का शर्तिया इलाज
यह कोई एडरवरटाइज नही है बल्की सच है इस एड्स नामके लाइलाज का स्थाई उपचार एक भारतीय डॉक्टर द्वारा खोजा गया है
डॉक्टर के बजाए वैद्य भी कह सकते है और शायद उन्हे नोबेल वगैरह भी नही मिलेगा
यह संघर्ष की कहानी है बिहार के नालंदा जिले के सोहसराय बरार के सरपंच के बेटे जिन्होने उच्च शिक्षा मे एलोपेथी जैसे क्रीम एजुकेशन को छोड आर्युवेद मे चिकित्सक की डिग्री ली
फिर मैदान मे आ डटें किंतु जब उन्होने देखा कि एलोपेथ से इलाज के बाद भी बीमारियां बार-बार उभर आती हैं, तो उन्होने इन बीमारियों के स्थाई समाधान के लिए आयुर्वेद पर अपना ध्यान केंद्रित किया, तब उन्हे मालुम चलाकि आर्युवेद की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में वर्तमान मे तो कायदे से कोई शोध हुआ ही नहीं है जबकि इसमें कई बीमारियों के स्थाई समाधान की अनंत संभावनाएं हैं तब इसी क्रम मे उन्होने बेहद कम संसाधन के बावजुद राजगीर मे भगवती आर्युवेद के नाम से अपने शोध संस्थान की नीवं डाली और एनिमीया, पाचन व जोड़ों के दर्द जैसी बीमारियां के स्थाई समाधान व शरीर के तीन दोषों-वात, कफ और पित्त को संतुलित करने वाली दवाओं की सफलतम खोज की और मरीजो से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली
इसी क्रम मे डॉक्टर साहब मानवी इम्युन सिस्टम को और कारगर बनाने के लिए खोज व शोध मे लग गये जिसमे AIDS पर ही शोध करने की ठानी और इस बीमारी के उन्मूलन और इसका स्थाई प्रभावी इलाज की दृढ़ इच्छा शक्ति ने डॉक्टर साहब को आखिरकार उन्होंने "कॉन्स्टॉप" के रूप में आयुर्वेद की यह दवा खोज ही ली, जो न सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को पुनःस्थापित करती है बल्कि मानव शरीर से एचआईवी के सारे वायरस को मार देती है। इसके कारण एचआईवी का मरीज पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकता है।
डॉक्टर कुमार का शोध न सिर्फ सफल हुआ बल्कि इससे उन्हें अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता से मानवता की सेवा करने का संतोष भी मिला।
इन महान व्यक्ति्व का नाम डॉक्टर अनिल है
जो कि एचआईवी के हर मरीज की पूरी जांच और उनमें वायरल लोड का खुद टेस्ट करते हैं। मरीजों का नियमित फॉलोअप किया जाता है और बीमारी में हर सुधार को दर्ज किया जाता है। डॉक्टर अनिल कई एचआईवी मरीजों का सफल इलाज कर सामान्य जीवन में वापस भेज चुके हैं।
वैसे़आप लोग जिया हो बिहार के लाला कह सकते है
यह कोई एडरवरटाइज नही है बल्की सच है इस एड्स नामके लाइलाज का स्थाई उपचार एक भारतीय डॉक्टर द्वारा खोजा गया है
डॉक्टर के बजाए वैद्य भी कह सकते है और शायद उन्हे नोबेल वगैरह भी नही मिलेगा
यह संघर्ष की कहानी है बिहार के नालंदा जिले के सोहसराय बरार के सरपंच के बेटे जिन्होने उच्च शिक्षा मे एलोपेथी जैसे क्रीम एजुकेशन को छोड आर्युवेद मे चिकित्सक की डिग्री ली
फिर मैदान मे आ डटें किंतु जब उन्होने देखा कि एलोपेथ से इलाज के बाद भी बीमारियां बार-बार उभर आती हैं, तो उन्होने इन बीमारियों के स्थाई समाधान के लिए आयुर्वेद पर अपना ध्यान केंद्रित किया, तब उन्हे मालुम चलाकि आर्युवेद की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में वर्तमान मे तो कायदे से कोई शोध हुआ ही नहीं है जबकि इसमें कई बीमारियों के स्थाई समाधान की अनंत संभावनाएं हैं तब इसी क्रम मे उन्होने बेहद कम संसाधन के बावजुद राजगीर मे भगवती आर्युवेद के नाम से अपने शोध संस्थान की नीवं डाली और एनिमीया, पाचन व जोड़ों के दर्द जैसी बीमारियां के स्थाई समाधान व शरीर के तीन दोषों-वात, कफ और पित्त को संतुलित करने वाली दवाओं की सफलतम खोज की और मरीजो से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली
इसी क्रम मे डॉक्टर साहब मानवी इम्युन सिस्टम को और कारगर बनाने के लिए खोज व शोध मे लग गये जिसमे AIDS पर ही शोध करने की ठानी और इस बीमारी के उन्मूलन और इसका स्थाई प्रभावी इलाज की दृढ़ इच्छा शक्ति ने डॉक्टर साहब को आखिरकार उन्होंने "कॉन्स्टॉप" के रूप में आयुर्वेद की यह दवा खोज ही ली, जो न सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को पुनःस्थापित करती है बल्कि मानव शरीर से एचआईवी के सारे वायरस को मार देती है। इसके कारण एचआईवी का मरीज पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकता है।
डॉक्टर कुमार का शोध न सिर्फ सफल हुआ बल्कि इससे उन्हें अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता से मानवता की सेवा करने का संतोष भी मिला।
इन महान व्यक्ति्व का नाम डॉक्टर अनिल है
जो कि एचआईवी के हर मरीज की पूरी जांच और उनमें वायरल लोड का खुद टेस्ट करते हैं। मरीजों का नियमित फॉलोअप किया जाता है और बीमारी में हर सुधार को दर्ज किया जाता है। डॉक्टर अनिल कई एचआईवी मरीजों का सफल इलाज कर सामान्य जीवन में वापस भेज चुके हैं।
वैसे़आप लोग जिया हो बिहार के लाला कह सकते है
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