आजकल के हालात भी बस युं ही से बड़े कृटीकल है कई विद्वानों का मानना है कि मोदी जी ..........मने भारत मे प्रधानमंत्री के पद का नाम मोदी जी है जब से बैंकों के NPA का राज उजागर किया तभीए से अंबानी परिवार के रिश्तेदार निरब मोदी के पंजाब बैंक घोटाले का पता लगा ।
जबकि इसके पहले एक घटना यह थी जिसके बारे मे देश के लोग बहुत कम जानते हो वो यह है कि संसद ने उपभोक्ता संरक्षण एक्ट 1986 के जगह पर नया संशोधन एक्ट 2017 संसद मे पेस कर दिया, यह उत्पादकों व सेवा प्रदाताओ के लिए पहले की तुलना में बिना छिला हुआ बांस जैसे है
तत्कालीन 86 के उपभोक्ता एक्ट का मसौदा कुछ ऐसा था कि मध्यस्थता व सुलह समझौते के आसपास ही समझा जाए। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट व संसद ने समय समय पर इसकी व्याख्या व संशोधन करते रहे पहला बड़ा बदलाव 93-94 में हुआ जब संसद ने बैंक, परिवहन, बीमा, होटल, डॉक्टर, सिविल कंट्रैक्टर, आदि को उपभोक्ता संरक्षण एक्ट के दायरे मे ला दिया, लेकिन स्थिति मे कोई विशेष. सुधार नही हुआ क्योंकि कानून तो बना लेकिन उपभोक्ता अदालतों के पास निर्णय देने का अधिकार दिया गया किन्तु निर्णयों को लागू करवाने के लिए सिविल जज के जैसे अधिकार नही दिए। अतः बड़े व्यवसायियों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ
विक्रेताओं व उपरोक्त सेवा प्रदाताओं की मनमानी चलती रही, ये लोग उपभोक्ता अदालतों को इग्नोर करते करते मामला यहाँ तक पहुँचा कि कुछ संगठनों ने इस एक्ट के निरसन हेतु खत्म कराने के नियत से इसके वैधता को चुनौती दे डाली कि संसद को सिविल कोर्ट के समकक्ष कोई नई अदालतों के गठन का अधिकार नही है ..............लेकिन वर्ष 2002 में अटल जी के प्रधानमंत्री रहते उपभोक्ता अदालतों को अपने निर्णय का पालन करवाने के लिए सिविल मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ दे दी गयी साथ जनता को जागरूक करने के लिए व्यापक प्रचार भी किए गये। हालाँकि सरकार का यह क्रांतिकारी कदम था किन्तु अब भारत अब डिजिटल होने लगा था जिसके कारण उपभोक्ता अदालतों का अस्तित्व ही नगण्य सा होने लगा। कारण व्यापार करने के तरीके में अमूल चूल परिवर्तन आरंभ होना शुरू हो गया जैसे ई मार्केटिंग, ऑनलाइन शॉपिंग मे गारंटी वारंटी न प्रदान करना, बड़े नामी चेहरे से उत्पादों का विज्ञापन हिडेन क्लाज के साथ, पीड़ित उपभोक्ता के लिए निर्माता या विक्रेता के कार्य स्थल पर ही केस करने की बाध्यता, अदालतों को स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार न होना आदि।
इन सब का प्रकार के अनैतिक कार्यविधियों का निराकरण उपभोक्ता संरक्षण संशोधन एक्ट 2017 मे वर्तमान सरकार द्वारा संसद में पेश किए गये है अब कोई भी निर्माता, विक्रेता, सेवा प्रदाता उपभोक्ता को चुना लगा अपनी जिम्मेदारी से भाग नही सकता, और बैंक को भी अपने ग्राहकों इनवेस्टरों को जवाब देना होगा कि उनके पैसे किसको दे रखे हैं।
अभी बहुत से निरब मोदी और मेहता दिखने वाले है
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