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रविवार, 18 फ़रवरी 2018

चूहों से प्रेम भला कौन करे

चूहो से भला कौन प्रेम करता है किसान का सबसे बड़ा नुकसान यही करते है 
बचपन मे हम चार पाँच या ज्यादा  बालकों की गैंग रही और गर्मी की छुट्टियों मे पलिहर (गेंहू कटने के बाद का खेत) के छुट्टा सांड हो जाते थे।
गैंग मे दो बहुत ही जानकार बालक भी थे खैर एक साल गांव के पास की बाजार मे एक पर्दे वाला नया सनिमा हॉल खुला लेकिन वो XXX वाली फिल्मों के लिए बदनाम हो चुका था विरोध भी होने लगा था हॉल वालों का ऐसी फिल्म लगने का तो वे दिन मे साफ सुथरी पुरानी फिल्में दिखाने लगे................. 
सो घर से फिल्म देखने के लिए पैसे माँगने का मतलब संसद मे रेणु आ चौधुरी बन जाना, थोबडे शक्ति कपूर लगने लगते और किसी किसी के साथ तो ऐसा होता कि भेलेंटाइन के दिन प्रेम प्रपंच करते हुए बजरंग दल के हत्थे चढ़ जाना जैसी हालत। 
अब पैसे का जुगाड कैसे हो क्योंकि टिकट तीन रुपया साइकल जमा के पचास पैसे और समोसा के पचास कुल कम से कम चार से पाँच रुपए का खर्च।
इस खर्च को निकालने का उपाय बताया गैंग उन दो जानकार बालकों ने कैसे कि 
गुरु थोड़ी मेहनत लगेगी सब मेहनत करेंगे तो रोज फिल्में देख सकते है 
हम लोगों ने कहा चलो तैयार है तो वो हमें गेंहु कट चुके खाली खेत मे ले गया और एक बिल के पास खड़ा हुआ, फिर उस बिल मे एक डंडा डाला हम लोग रोकने लगे अबे चिरकुट सांप होगा वो बोला महाराज इ मूस (चुहा) कै बिल है 
फिर बिल से थोड़ा हटकर आस पास पैर हल्के से पटके कभी डंडे को खाली खेत की जमीन को पिटता कुल दस मिनट बाद जितने गैंग के सदस्य होते उतने ही जगह पर खेत मे निसान लगा देता और कहता कि इस जगह पर  बस एक आध बित्ता ( पांच से तीन इंच के मध्य) खुदाई करना, सब यही करते।
दो तीन मिनट की खुदाई के बाद एक से डेढ़ फुट के चैम्बर मिलते जिसमें कि दो चार किलो शुद्ध साफ चमकता हुआ गेंहू मिला करता था। अब हम लोग इस गेंहू को बनिये की दुकान पर बेच कर हम पुरी गर्मी भर फिल्में देखा करते थे .................
एक बार पता लगा कि सनम बेवफा फिल्म लगाने वाली है हम सारे गैंग के लड़के बड़े उत्साह से  खेतों की ओर निकल पड़े लेकिन नसीब ही बेवफा  निकली खेतों मे किसानों ने सुबहे सवेरे पानी भर दिया था चुहे बिलों से निकल कर भाग रहे थे कि चील कौवे उन चूहों के शिकार कर लेते।
उस दिन हमारे कलेजे पर सांप नही नही अजगर जैसे लोट रहा हो मानो कोई सिने पर मूंग दल रहा हो बिना किसी के थप्पड मारे चेहरा लाल हुआ जा रहा था बस हम लोग रो न सके थे बाकी सारी दुर्दशा हो चुकी थी अब अय्यासी कहा से कैसे होगी, 
हाय हमारे प्यारे चुहे।
मुफ्त के पैसे न होने से कैसी हालत हो जाती है इस कहानी का वर्तमान राजनीतिक घटनाओं से कोई संबंध नही है।

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