शायद आपको मालूम होगा कि एक सामान्य फोर व्हिलर वाहन बनाने मे कुल सत्तर हजार पार्टस का उपयोग होता है एक नट से लेकर हैंडल लाइट तक, मैकेनेकिल इंजिनियर लोगो को मालूम होगा.........
और यह भी मालूम होगा कि विश्वप्रिसद्ध पंम्प, इंजन निर्माता किर्लोसकर ग्रुप के संजय किर्लोसकर के फादर पंम्प निर्माण व्यवसाय मे उतरने के पहले घर घर जा के मसाले बेचा करते थे वो तो महाराष्ट्र मे पानी की कमी ने उन्हे इस काम के तरफ आकर्सित किया............
और यह भी मालूम होगा कि भारत मे आर्मी के लिए जुते तक बनाने की टेक्नोलॉजी नही है...............
मेरे एक सहयोगी मकैनिकल इंजिनियर जो कि उन दिनों पढ रहे थे पुणे मे, हैदराबाद के आर्म डिविजन के तरफ से इन स्टूडेंटस के ग्रुप को एक विजिट के लिए बुलाया गया
.........मैटर यह था कि आप हमारा सहयोग करें
असल मे वहां टैॆक के बारे चर्चा हो रही थी .....
कोई भी आर्मी टैंक हैवी मेटल का बना होता है बॉडी की थिकनेस ऐसी होती है कि कोई भी बुलेट,गोला बम कैसे भी हानि नही पहुंचा सकता........
तो फिर उसके अंदर बैठे सैनिकों की मौत कैसे हो जाती है, क्योकि बमों के विस्फोट के बाद उस जगह पे हैवी वैक्युम व प्रेसर क्रिएट होता है और टैकं उछल पडता है जिससे उसके अंदर बैठे सैनिकों की हड्डीयां टूट के चूर हो जाती है और सैनिक शहीद........
खैर इसी टैक्निकल मसले को लेकर पुणे के मेरे सहयोगी व स्टूडेंट टीम को उन दिनों हैदराबाद बुलाया गया था और स्टूडेटस से कहा गया कि किसी तरह से, किस तकनीकि से टैकं के अंदर बैठे सैनीकों की जान बचाई जा सकती है कि टैंक पर बम गिरने के बाद भी वैक्युम व प्रेसर क्रिएट न हो, और वे इस संबंध मे टेंडर करने जा रहे है स्टूडेंस टैक्निकल प्वाइंट इस संबॆध में साझा करें.......
असल मे बताना यह है कि इसी टेंडर को डालने के लिए भारत की एक बडी कंपनी जिसका नाम आजकल कथित तौर पे एक फाइटर जेट के घोटाले मे नाम उछाला जा रहा, और जो कभी डिफेंस के टेंडर डील नही करती थी उसके बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर ने एक दिन मे डिफेंस कंम्पनी रजिस्टर्ड करा के अपने प्राइवेट चार्टर्ड प्लेन से आके टेॆडर डाल दिया था हालाकि इस कंपनी को यह टेंडर मिला नही पर शुरूआत पंद्रह साल पहले कर दिया था...........
आज भारत मे आर्मी के लिए हैवी व्हीकल केवल टाटा व थापर ग्रुप ही बनाते है जो केवल ज्यादातर ढुलाई के लिए उपयोग मे होता है आर्मड व्हिकल मे भारत की कोई कंपनी अभी तक तो नही थी लेकिन भारत समेत दुनिया भर मे आर्मी के लिए साजो सामान युद्धक मशिनरी का बडा व क्रीम व भयंकर मुनाफेदार बाजार है जिसे देखते हुए अब भारतीय उधोगपति भी समझने लगे है और इस बिजनेस मे उतर पडे है
वैसे एक बात जान लिजीए कि भारतीय सैनिकों के लिए अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप जुते बनाने वाली फैक्ट्री कानपुर मे खुल चुकी है और टेंडर भी मीला है सेना के तरफ से........,
सम्भवतह भारत की कंपनीयां अगले पांचएक सालों मे दुनिया के आर्म बेस कंपनीयों को टक्कर देने लगेगी.......
और यह भी मालूम होगा कि विश्वप्रिसद्ध पंम्प, इंजन निर्माता किर्लोसकर ग्रुप के संजय किर्लोसकर के फादर पंम्प निर्माण व्यवसाय मे उतरने के पहले घर घर जा के मसाले बेचा करते थे वो तो महाराष्ट्र मे पानी की कमी ने उन्हे इस काम के तरफ आकर्सित किया............
और यह भी मालूम होगा कि भारत मे आर्मी के लिए जुते तक बनाने की टेक्नोलॉजी नही है...............
मेरे एक सहयोगी मकैनिकल इंजिनियर जो कि उन दिनों पढ रहे थे पुणे मे, हैदराबाद के आर्म डिविजन के तरफ से इन स्टूडेंटस के ग्रुप को एक विजिट के लिए बुलाया गया
.........मैटर यह था कि आप हमारा सहयोग करें
असल मे वहां टैॆक के बारे चर्चा हो रही थी .....
कोई भी आर्मी टैंक हैवी मेटल का बना होता है बॉडी की थिकनेस ऐसी होती है कि कोई भी बुलेट,गोला बम कैसे भी हानि नही पहुंचा सकता........
तो फिर उसके अंदर बैठे सैनिकों की मौत कैसे हो जाती है, क्योकि बमों के विस्फोट के बाद उस जगह पे हैवी वैक्युम व प्रेसर क्रिएट होता है और टैकं उछल पडता है जिससे उसके अंदर बैठे सैनिकों की हड्डीयां टूट के चूर हो जाती है और सैनिक शहीद........
खैर इसी टैक्निकल मसले को लेकर पुणे के मेरे सहयोगी व स्टूडेंट टीम को उन दिनों हैदराबाद बुलाया गया था और स्टूडेटस से कहा गया कि किसी तरह से, किस तकनीकि से टैकं के अंदर बैठे सैनीकों की जान बचाई जा सकती है कि टैंक पर बम गिरने के बाद भी वैक्युम व प्रेसर क्रिएट न हो, और वे इस संबंध मे टेंडर करने जा रहे है स्टूडेंस टैक्निकल प्वाइंट इस संबॆध में साझा करें.......
असल मे बताना यह है कि इसी टेंडर को डालने के लिए भारत की एक बडी कंपनी जिसका नाम आजकल कथित तौर पे एक फाइटर जेट के घोटाले मे नाम उछाला जा रहा, और जो कभी डिफेंस के टेंडर डील नही करती थी उसके बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर ने एक दिन मे डिफेंस कंम्पनी रजिस्टर्ड करा के अपने प्राइवेट चार्टर्ड प्लेन से आके टेॆडर डाल दिया था हालाकि इस कंपनी को यह टेंडर मिला नही पर शुरूआत पंद्रह साल पहले कर दिया था...........
आज भारत मे आर्मी के लिए हैवी व्हीकल केवल टाटा व थापर ग्रुप ही बनाते है जो केवल ज्यादातर ढुलाई के लिए उपयोग मे होता है आर्मड व्हिकल मे भारत की कोई कंपनी अभी तक तो नही थी लेकिन भारत समेत दुनिया भर मे आर्मी के लिए साजो सामान युद्धक मशिनरी का बडा व क्रीम व भयंकर मुनाफेदार बाजार है जिसे देखते हुए अब भारतीय उधोगपति भी समझने लगे है और इस बिजनेस मे उतर पडे है
वैसे एक बात जान लिजीए कि भारतीय सैनिकों के लिए अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप जुते बनाने वाली फैक्ट्री कानपुर मे खुल चुकी है और टेंडर भी मीला है सेना के तरफ से........,
सम्भवतह भारत की कंपनीयां अगले पांचएक सालों मे दुनिया के आर्म बेस कंपनीयों को टक्कर देने लगेगी.......
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