किसी भी खूबसूरत को देख अमुमन लोग कहते है "छप्पन छूरी" है
तो यह उपमा अायी कहां से
यह जगनिक ने लिखा है
आल्हा रूदल बावन वार, छप्पन छूरी नौ तलवार।
खैर यह "आल्हा" महाकाव्य वीर रस से संबंधित है और आल्हा खंड स्वर में सुनने के बाद बीमार और कमजोर यहां तक कि टीबी ग्रस्त इंसान के भी सिना चौड़ा रोगंटे खड़े हो जाए और हारी हुई लड़ाई मे लड़ने को तैयार हो जाए।
सनातनी हिन्दू लोग महावीर सिद्धार्थ अंगद आदि अन्य के लिए लड जाएंगे जबकि उक्त संप्रदाय के लोग बेहद सक्षम है स्वयं के संतों देवताओं गुरूओं के अपमानित कर्ताऔ को प्रतिउत्तर देने में।
रही बात सनातनी संत कि तो हमारे यहां चारों पीठों नेे संत घोषित करने के कभी कोई विधि नियम नही बनाए
हां लेकिन वे महामंडलेश्वर मठाधीस की घौषणा कर देते है देश में होने वाले चारो कुंभ के दौरान, लेकिन कौन संत यह बता सकने में अक्षम रहते है । परमहंस, किनाराम, देवरहवा बाबा अवधुत बाबा आदि को ये चारों पीठ सनातन के पुरूद्धार हेतु निश्छल हो संत घोषित कर देते तो क्या खराबी हो जाती।
आजकल ये पीठाधिश्वर सांई बाबा पर इतना शोर मचाते है ये ऐसी स्थिति कभी होती ही नही यदि किसी सनातनी संत को अंश अवतार बता ये लोग कुंभ के समय संत घोषित करते पूज्य होने देते।
अवधुत बाबा अभी नये ही थे बहुत लोगों ने देखा ही होगा उनके जीवित रहते भर में और आज भी उनके संस्थान कुष्ठ रोगियों के निदान व सेवा मे विश्व भर मे सर्वोत्तम व अग्रणी है। कोई टेरेजा माता इनके अंश मात्र भी नही ठहरती कुष्ठ सेवा में, वस्तुत: संसार के कई राष्ट्र और भारत सरकार ने भी इनसे प्रभावीत हो कुष्ठ रोग उन्मूलन अभियान चलाया और इन सभी महान भारतीय बाबाओं संतों का महत्व हम नही अमेरिकन और योरपीयन जानते है इन सब संतों के बड़े बड़े मठ और सेवा संस्थान और अनुयायी भी विदेशों मे ही है
खैर देश की बहुसंख्यक जनता जानती है कि कौन संत कहलाने योग्य है कौन पूज्य बस आपलोगों ने बहुसंख्यक जनता से सीधे जुड़ने का सुअवसर गंवा दिया नही शंकराचार्य जी, आप लोग अपने श्रेष्ठतम का राग अलापते रहें और आम जनमानस से दूर कट कर रहें।
और भारतीय सनातनी जनता संगठन बावन युद्धों की वीरता और नौ तलवारो व छप्पन छूरी हथियारों का स्वप्ननिल बखान करती रहे और अंदर से कब खोखले होते जाएंगे आप लोगों को पता ही नही चले।
वैसे साबरमती के संत में क्या दिक्कत रही उन्हें महात्मा मे ही निपटा दिया गया उन्हें भी वैसे ही अपमान सहने हुए जो किसी भी सामान्य या महान ने सहे होंगे वो पत्नी समेत गरीब गुर्बो मजलूमों रोगियों की सेवा ही करते रहे, वो भी किसी चमत्कारिक संत से कम थोड़े ही थे।
तो यह उपमा अायी कहां से
यह जगनिक ने लिखा है
आल्हा रूदल बावन वार, छप्पन छूरी नौ तलवार।
खैर यह "आल्हा" महाकाव्य वीर रस से संबंधित है और आल्हा खंड स्वर में सुनने के बाद बीमार और कमजोर यहां तक कि टीबी ग्रस्त इंसान के भी सिना चौड़ा रोगंटे खड़े हो जाए और हारी हुई लड़ाई मे लड़ने को तैयार हो जाए।
सनातनी हिन्दू लोग महावीर सिद्धार्थ अंगद आदि अन्य के लिए लड जाएंगे जबकि उक्त संप्रदाय के लोग बेहद सक्षम है स्वयं के संतों देवताओं गुरूओं के अपमानित कर्ताऔ को प्रतिउत्तर देने में।
रही बात सनातनी संत कि तो हमारे यहां चारों पीठों नेे संत घोषित करने के कभी कोई विधि नियम नही बनाए
हां लेकिन वे महामंडलेश्वर मठाधीस की घौषणा कर देते है देश में होने वाले चारो कुंभ के दौरान, लेकिन कौन संत यह बता सकने में अक्षम रहते है । परमहंस, किनाराम, देवरहवा बाबा अवधुत बाबा आदि को ये चारों पीठ सनातन के पुरूद्धार हेतु निश्छल हो संत घोषित कर देते तो क्या खराबी हो जाती।
आजकल ये पीठाधिश्वर सांई बाबा पर इतना शोर मचाते है ये ऐसी स्थिति कभी होती ही नही यदि किसी सनातनी संत को अंश अवतार बता ये लोग कुंभ के समय संत घोषित करते पूज्य होने देते।
अवधुत बाबा अभी नये ही थे बहुत लोगों ने देखा ही होगा उनके जीवित रहते भर में और आज भी उनके संस्थान कुष्ठ रोगियों के निदान व सेवा मे विश्व भर मे सर्वोत्तम व अग्रणी है। कोई टेरेजा माता इनके अंश मात्र भी नही ठहरती कुष्ठ सेवा में, वस्तुत: संसार के कई राष्ट्र और भारत सरकार ने भी इनसे प्रभावीत हो कुष्ठ रोग उन्मूलन अभियान चलाया और इन सभी महान भारतीय बाबाओं संतों का महत्व हम नही अमेरिकन और योरपीयन जानते है इन सब संतों के बड़े बड़े मठ और सेवा संस्थान और अनुयायी भी विदेशों मे ही है
खैर देश की बहुसंख्यक जनता जानती है कि कौन संत कहलाने योग्य है कौन पूज्य बस आपलोगों ने बहुसंख्यक जनता से सीधे जुड़ने का सुअवसर गंवा दिया नही शंकराचार्य जी, आप लोग अपने श्रेष्ठतम का राग अलापते रहें और आम जनमानस से दूर कट कर रहें।
और भारतीय सनातनी जनता संगठन बावन युद्धों की वीरता और नौ तलवारो व छप्पन छूरी हथियारों का स्वप्ननिल बखान करती रहे और अंदर से कब खोखले होते जाएंगे आप लोगों को पता ही नही चले।
वैसे साबरमती के संत में क्या दिक्कत रही उन्हें महात्मा मे ही निपटा दिया गया उन्हें भी वैसे ही अपमान सहने हुए जो किसी भी सामान्य या महान ने सहे होंगे वो पत्नी समेत गरीब गुर्बो मजलूमों रोगियों की सेवा ही करते रहे, वो भी किसी चमत्कारिक संत से कम थोड़े ही थे।
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