भारतीय प्रधानमंत्री दुनिया
भर के मंचों से आतंकवाद के प्रति पिछले दो वर्षों से जिस बात को दुनिया भर को समझा
रहे थे उसमे वे सफल हो गए और कश्मीर मामले
पर कुछ मुल्कों का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा
होना भारतीय प्रधानमंत्री की विदेश नीति की सफलता को इंगित करता मील का पत्थर साबित
हुआ। विश्व के सभी लोकतांत्रिक देश आतंकवाद
से पीड़ित राष्ट्र, ओपेक समूह की कश्मीर पर
तात्कालिक प्रतिक्रिया से हैरत में है, अब दुनिया भर के लोकतान्त्रिक देशो के लिए कश्मीर में भारतीय सेना की करवाई की आलोचना
करने का आधार ही खत्म गया। क्योंकि सेना की
कार्रवाई संविधान सम्मत है। क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। ओपेक मुल्कों ने भारत
का काम आसान कर दिया।
इसकी पटकथा कुछ इस तरह है जैसा की हम लोग जानते है द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया शक्ति के दो केंद्रों में बाँट गयी और यह दौर सोवियत रूस के विघटन तक चला लगाकि अब शक्ति का केवल एक केंद्र ही रहेगा किन्तु रूस में पुतिन के आने के बाद फिर रूस अपने पुराने रूप में आगया किन्तु नब्बे के दशक में में चीन ने स्वयं को दुनिया तीसरी शक्ति के रूप में स्थापित करना आरम्भ कर दिया और पूरा विश्व शक्ति के तीन केंद्रों विभाजित होने लगा तभी भारत में ने अट्ठानबे में परमाणु परीक्षण कर विश्व के सभी शक्ति
केंद्रों को एक चुनौती सा दे डाला हालांकि उसके बाद दस से ज्यादा
सालों तक भारत ने शांति बनाये रखा।
वर्ष २०१४ में नयी सरकार के गठन होने पर भारत ने अपनी विदेश नीति में थोड़ा आक्रामकता
लाना आरम्भ करा दिया।
जैसा की विदित है हिन्द महासागर पर प्रभुत्व और मध्य एशिया के सिल्क
रुट पर अधिकार सदैव से विश्व के प्रमुख शक्तियों के आकांक्षा रही है हिन्द महासागर
पर भारत का पूर्ण एकाधिपत्य है इसलिए कोई महाशक्ति सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहता
अतः इसी क्रम में मध्य एशिया के सिल्क रुट
पर वर्तमान में नए समीकरण उभरे है अमेरिका
ने इराक को आपने घेरे में लिया हुआ है तो चीन ने पाकिस्तान को रूस ने सीरिया को और
चौथी शक्ति के रूप में उभरते हुए भारत ने अफगानिस्तान
से गठजोड़ कर रखा है लेकिन इसमे भारत के साथ जो सबसे आश्चर्यजनक बात ये है की इराक और
तुर्की से लगी सिमा के मध्य लगभग पचास लाख जनसँख्या वाला कूर्द क्षेत्र भारत के साथ
खड़ा है और पिछले दिनों इराक में फंसे भारतीय नागरिकों को छुड़ाने में कुर्दों ने सहयोग भी किया था और हाल ही में
एक कूर्द नेता ने भारत से अपने नागरिकों के लिए भारत से दवाओं और खाद्यान्न की सहायता
भी माग की है
इस समय वर्तमान में अरब प्रायद्वीप के राष्ट्रों के युद्ध में लिप्त होने के बाद सबसे
बड़ा मुद्दा कश्मीर और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का है और पाकिस्तानी राजनीतिमें कश्मीर
का महत्त्व जग विदित है वे इसी मुद्दे के सहारे वे सरकारें बनाते हैं और अपनी नाकामयाबियों
का जनता का ध्यान हटाते हैं साथ ही दुनिया
के अन्य व् मुस्लिम देशो से अपनी अर्थव्यवस्था
के लिए डोनेशन भी पाते है
सो कश्मीर समस्या का हल पाक
कभी चाहेगा नहीं , अतः भारत सरकार को यह चाहिए कि पाकिस्तान की रोटियाँ कश्मीर की आग से सिकनी
बन्द हों । कुछ ऐसी कूटनीति करनी होगी कि जिस आग से वह अपना घर आज तक रोशन करता आया
है , वही आग उसका घर जला दे ।
हमारा लक्ष्य पाकिस्तान नहीं है लेकिन पाकिस्तान ने हमे ही निशाने पर ले रखा है हमारे अर्थव्यवस्था
के एक बड़े हिस्से का उपयोग पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित अनैतिक ताकतों के विरूद्ध बर्बाद कर देना
होता है यदि हमें आर्थिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों
में आगे बढ़ना है हम एक उभरती र्थव्यवस्था वाले
देश का प्रतिनिधित्व कर रहे है तो हमें पाकिस्तान
को घरेलू मोर्चे पर विफल करने के लिए उसे उसकी भाषा में समुचित उत्तर देना ही होगा।
जम्मू कश्मीर की स्थिति यह है की राज्य के अस्सी प्रतिशत हिस्से में
को कोई दिक्कत नहीं है शेष बीस प्रतिशत मुस्लिम बहुल इलाका है जिसमे की दस प्रतिशत
से अधिक भारत समर्थक बाकि के दस प्रतिशत के आसपास की आबादी के लोग उतने ही हिस्से को
अलगाववादियों के चक्कर में अपने निजी लाभ हेतु पुर राज्य का माहौल खराब करे जा रहे
है। जब की पाक अधिकृत कश्मीर की स्थिति बहुत ही दयनीय है हाल ही में एक ब्रिटिश संस्था द्वारा पीओके में एक सर्वेक्षण करवाया, जिसमे वहां के सभी स्थानीय कश्मीरी पाकिस्तान में विलय नहीं चाहते
हैं।
इस साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भारतीय प्रधानमन्त्री ने कश्मीर मुद्दे पर पाक को स्पष्ट रूप से यह सन्देश
दे दिया है कि अब बात केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर एवं घाटी में पाक द्वारा प्रयोजित
हिंसा पर ही होगी। साथ ही बलूचिस्तान एवं पी
ओ के में रहने वाले लोगों की दयनीय स्थिति एवं वहाँ होने वाले मानव अधिकारों के हनन
के मुद्दे को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का को की मंशा व्यक्त कर पाक के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक परिद्रश्य
बदल दिया है .
बहुत से लोगो का मानना है की बलूचिस्तान को लेकर प्रधानमन्त्री जी ने
जो कहा इस बयान से लाभ बहुत कम और देश की प्रतिष्ठा को हानि ज्यादा होगी| लाभ सिर्फ
इतना कि बलूच लोग भावनातमक रूप से जुड़ते दिखाई देंगे और नुकसान यह होगा कि अब सीपेक
कोरिडोर की किसी भी समस्या का सीधा दोषी भारत ठहराया जायेगा, किसी पडोसी राज्य में
अस्थिरता फ़ैलाने का दोषी माना जायेगा, उसके बाद मुस्लिम राष्ट्र और अरब देश जो पाकिस्तान
के प्रति सॉफ्ट कार्नर रखते है वो भारत के विरूद्ध हो सकते है यह सब सोच उसी तरह की
है जैसे की सभी को छोड़ किसी राज्य का , राज्य
के विशेष हिस्से का या समुदाय विशेष का तुस्टिकरण। यह तुस्टिकरण की नीति
भारत को पिछले सत्तर सालों में दुनिया के सबसे पिछले पायदान खड़ा रहने की स्थिति में
ला दिया है। नाजायज मांगो और देशविभाजक क्रियाकलापों लिप्त किसी भी समुदाय के लिए तुस्टिकरण
की नीति कतई उचित नहीं है
हालांकि बुद्धिजीवियों व् विदेश मामलों के विशेषज्ञों का यह अनुमान सही सिद्ध हुआ और ओपेक देशो ने कश्मीर
मुद्दे भारत का विरोध और बलूचिस्तान पर पाक का समर्थन किया। चीन ने भी अपना विरोध जता
दिया है लेकिन यह सिर्फ चीन व् चौदह देशो एक व्यापारिक समूह की बात है जबकि दुनिया अन्य
किसी मुस्लिम देश ने भारत के विरुद्ध कुछ नहीं कहा कश्मीर मामले पर न ही किसी अमेरिकी
कांटिनेंटल देश न ही योरोपीय महाद्वीप के राष्ट्रों ने भारत के विरूद्ध कुछ कहा। तो हमे सोचना चाहिए आखिर क्यों भारत के पाक अधिकृत
कश्मीर और बलोचिस्तान मुद्दे को उछालने पर
सारी दुनिया चुप्प है जबकि कुछ सालों पहले भारत का कश्मीर मुद्दे पर अंतराष्ट्रीय बिरादरी
में बैक फुट पर रहना होता था
तो हम और आप केवल एक पक्ष का
मूल्याङ्कन कर रहे है जो अभी दिख रहा है लेकिन यह भूल रहे है की भारतीय प्रधानमंत्री दुनिया भर के मंचों से आतंकवाद के प्रति जिस बात
के दुनिया भर को समझा रहे थे उसमे वे सफल हो गए और कश्मीर मामले पर कुछ इस्लामिक मुल्कों का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा
होना भारतीय प्रधानमंत्री की विदेश नीति की भारी जीत है। विश्व
के सभी लोकतांत्रिक देश आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्र
ओपेक समूह की कश्मीर पर तात्कालिक प्रतिक्रिया से हैरत में है, यूनाइटेड नेशन ने भी
भारत का आंतरिक मामला कहके पल्ला झाड़ लिया है गूगल मैप पाक अधिकृत कश्मीर को भारत
का हिस्सा दिखाने लगा है जबकि बलूच क्षेत्र को विवादित इलाके जैसा क्या यह सब मुसलमानों
और मानवाधिकार पर छाती पिटती ताकतों को नैतिक शिकस्त देने को काफी नहीं है।अब दुनिया
भर के लोकतान्त्रिक देशो के लिए कश्मीर में भारतीय सेना की करवाई की आलोचना
करने का आधार ही खत्म गया। क्योंकि सेना की
कार्रवाई संविधान सम्मत है। क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है जाति धर्म सम्प्रदाय
देखकर भारतीय प्रशासन किसी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं करता यह पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं पर हुई प्रशानिक कार्यवाहियों
से विश्व स्टार पर प्रमाणित है। ओपेक मुल्कों
ने भारत का काम आसान कर दिया।
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