देश की आजादी के बाद देश का बंटवारा हो गया वो भी धार्मिक अआधार पर, हिन्दू सनातन बहुल भारत व् मुस्लिम बहुल पाकिस्तान नमक देश बनेl पाकिस्तान तो पूरी तरह से एक धुर धार्मिक देश बनने की रह पर चल चूका था सो बहुसंख्यक भारतीय समुदाय में भी भारत को धार्मिक देश बनते देखने की कल्पना ने लोगो के ह्रदय में घर करना आरम्भ कर दिया।
पहले तो सत्तासीन नेताओं ने इसे बहुसंख्यक की जनभावना मानने से मना कर दिया था किन्तु कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमण के साथ ही हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद्, जनसंघ नामक छोटे से दलों ने पहली लोकसभा में कंम्युनिस्ट व् कांग्रेस के जैसे विशाल कार्यकर्त्ता संगठन वाली पार्टी के रहते हुए दसियों सीटे ले कर धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करवाया साथ ही इन्ही दलों से सम्बंधित अथवा जुड़े हुए लगभग चालीस निर्दलीय व् अन्य छोटे दलो के सांसदों का समर्थन उपरोक्त हिन्दू संगठनो को प्राप्त था, इसके साथ ही सत्ता पक्ष के कई नेताओं व् सांसदों ने भी समर्थन करना आरम्भ कर दिया था किन्तु बहु सांस्कृतिक व् बहु सांप्रदायिक देश का हवाला देते हुए हिन्दू धार्मिक देश घोषित करना उचित नहीं जान पड़ा क्यों की देश में ही धार्मिक गृह युद्ध की सम्भावना हो सकती थी किन्तु बहुसंख्यक की जन भावना की अनदेखी भी संभव नहीं था,
तत्कालीन सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई ने हिन्दू आष्था के सर्वाधिक चर्चित स्थल एवं बारह ज्योतिर्लिगों में प्रथम, छह बार विध्वंसित सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हो गए,
सोमनाथ मंदिर के अस्तित्व में होने प्रमाण मौर्य काल में भी मिलता है भूकंप एवं युद्धों के कारन यह प्रथम बार छठी सदी में कुछ नष्ट हुआ था द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट किया था फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। मध्य कल में भी सोमनाथ मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया
somnath-temple 1869AD
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में सुल्तान खिलजी ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। और आखिरीबार मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर भारत के तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने ८ मई १९५० को मंदिर की आधार शिला रखी तथा ११ मई १९५१ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर १९६२ में पूर्ण निर्मित हो गया। किन्तु दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर के निर्माण से परिणाम यह हुआ की तत्कालीन कांग्रेस पर बहुसंख्यक हिंदूओं ने विश्वास कर इस वफादारी के लिए पचासों साल के लिए निर्बाध कांग्रेस को सत्ता सौंप दिया।
किन्तु नब्बे के दशक के आते आते राम मंदिर निर्माण के शोर ने धीरे धीरे सोमनाथ मंदिर निर्माण के प्रभाव को कम करना आरम्भ कर दिया था बहुसंख्यक वोटों के हाथ से निकलने की स्थिति देखते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कथित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया और पूजा अर्चन के आदेश पारित किये किन्तु उक्त विवादित स्थल पर किसी नए मंदिर के निर्माण का वादा नहीं किया गया सरकार द्वारा, यह एक शानदार अवसर था कांग्रेस पार्टी के लिए सोमनाथ मंदिर की तरह बहुसंख्यक वोट का विश्वाश जीतने के लिए और वो इसमें चूक गए,
हालाँकि कांग्रेस पार्टी के इस अदूरदर्शिता का परिणाम यह हुआ की मात्र दस वर्ष पूर्व में स्थापित एक नव निर्मित छोटा सा दल भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का वादा कर इस मुद्दे को सत्तारूढ़ कांग्रेस से ले लिया और बहुत ही काम समय भारत के राष्ट्रीय फलक पर छा गया.
वर्तमान में यह नविन दल सत्तारूढ़ है यदि किसीतरह राम मंदिर का निर्माण करदेता है तो संभवतः बहुसंख्यक अगले पचास वर्षो के लिए इस दल को निर्बाध वोट देते रहे.
पहले तो सत्तासीन नेताओं ने इसे बहुसंख्यक की जनभावना मानने से मना कर दिया था किन्तु कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमण के साथ ही हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद्, जनसंघ नामक छोटे से दलों ने पहली लोकसभा में कंम्युनिस्ट व् कांग्रेस के जैसे विशाल कार्यकर्त्ता संगठन वाली पार्टी के रहते हुए दसियों सीटे ले कर धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करवाया साथ ही इन्ही दलों से सम्बंधित अथवा जुड़े हुए लगभग चालीस निर्दलीय व् अन्य छोटे दलो के सांसदों का समर्थन उपरोक्त हिन्दू संगठनो को प्राप्त था, इसके साथ ही सत्ता पक्ष के कई नेताओं व् सांसदों ने भी समर्थन करना आरम्भ कर दिया था किन्तु बहु सांस्कृतिक व् बहु सांप्रदायिक देश का हवाला देते हुए हिन्दू धार्मिक देश घोषित करना उचित नहीं जान पड़ा क्यों की देश में ही धार्मिक गृह युद्ध की सम्भावना हो सकती थी किन्तु बहुसंख्यक की जन भावना की अनदेखी भी संभव नहीं था,
तत्कालीन सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई ने हिन्दू आष्था के सर्वाधिक चर्चित स्थल एवं बारह ज्योतिर्लिगों में प्रथम, छह बार विध्वंसित सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हो गए,
सोमनाथ मंदिर के अस्तित्व में होने प्रमाण मौर्य काल में भी मिलता है भूकंप एवं युद्धों के कारन यह प्रथम बार छठी सदी में कुछ नष्ट हुआ था द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट किया था फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। मध्य कल में भी सोमनाथ मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया
somnath-temple 1869AD
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में सुल्तान खिलजी ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। और आखिरीबार मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर भारत के तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने ८ मई १९५० को मंदिर की आधार शिला रखी तथा ११ मई १९५१ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर १९६२ में पूर्ण निर्मित हो गया। किन्तु दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर के निर्माण से परिणाम यह हुआ की तत्कालीन कांग्रेस पर बहुसंख्यक हिंदूओं ने विश्वास कर इस वफादारी के लिए पचासों साल के लिए निर्बाध कांग्रेस को सत्ता सौंप दिया।
किन्तु नब्बे के दशक के आते आते राम मंदिर निर्माण के शोर ने धीरे धीरे सोमनाथ मंदिर निर्माण के प्रभाव को कम करना आरम्भ कर दिया था बहुसंख्यक वोटों के हाथ से निकलने की स्थिति देखते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कथित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया और पूजा अर्चन के आदेश पारित किये किन्तु उक्त विवादित स्थल पर किसी नए मंदिर के निर्माण का वादा नहीं किया गया सरकार द्वारा, यह एक शानदार अवसर था कांग्रेस पार्टी के लिए सोमनाथ मंदिर की तरह बहुसंख्यक वोट का विश्वाश जीतने के लिए और वो इसमें चूक गए,
हालाँकि कांग्रेस पार्टी के इस अदूरदर्शिता का परिणाम यह हुआ की मात्र दस वर्ष पूर्व में स्थापित एक नव निर्मित छोटा सा दल भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का वादा कर इस मुद्दे को सत्तारूढ़ कांग्रेस से ले लिया और बहुत ही काम समय भारत के राष्ट्रीय फलक पर छा गया.
वर्तमान में यह नविन दल सत्तारूढ़ है यदि किसीतरह राम मंदिर का निर्माण करदेता है तो संभवतः बहुसंख्यक अगले पचास वर्षो के लिए इस दल को निर्बाध वोट देते रहे.
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