चन्द्रगुप्त मयूर - महान आचार्य
चाणक्य आप को अवश्य ही ज्ञात होगा कि क्रूर यवन शासक अलकक्षेद्र अपने सेना को ले कर
भारत भूमि की सीमा में प्रविस्ट हो कर राष्ट्र
द्रोही तक्षशिला नरेश आम्भीराज के सहयोग से भारत भूमि के पूर्वी छोर तक विजित करने
की आकांछा रखता है
आचार्य चाणक्य बोले - अवश्य ज्ञात
है
चन्द्रगुप्त आश्चर्य चकित होते
हुए प्रश्न किया - तत्पश्चात आपने हमे उस यवन से युद्ध करने से क्यों रोका, क्या आप
को चन्द्र गुप्त के बाहुबल पे तनिक भी भरोसा नहीं है क्या आपको अपने स्वयं द्वारा शिक्छित
किये गए चन्द्रगुप्त की योग्यताओ पर संदेह है? क्या इसी कारण अब तक आपने हमे राजा घोषित नहीं किया , हम राष्ट्र की सेवा एवं सुरक्छा
हेतु प्राणों का भी मूल्य नहीं समझते महान आचार्य
चाणक्य बोले – महाबली पराक्रमी
आर्य चन्द्र मयूर आपको नीति शास्त्र का नियम तो मालूम ही होगा की
छत्रिय राजा को पराक्रमी, राजनीती,
युद्धनीति, विदेश नीति में निपुण होना चाहिए
ब्राम्हण को शिक्छा नीति, राजनीती,
कूटनीति, राज्य गृहनीति
में निपुण होना चाहिए
वैश्य को वाणिज्य व् व्यापारनिति तथा नागरिको व् श्रेष्ट जनो से मधुर सम्बन्ध की नीति में निपुण होना चाहिए,
चाणक्य पुनः नीतियुक्त होकर बोले
–महापराक्रमी आर्य चन्द्र मयूर, अलकक्षेद्र व् उसकी सेना अभी तीन और से घिरी हुई है उत्तर दिशा
से आप के राज्य की सीमा और महान विशाल हिमालय व् महाराज पर्वतक है, पूर्व में विशाल
मगध राज्य है, दक्छिन में विशाल सिन्धु महासागर, यदि उसे पूर्व की दिशा में आना होगा
तो प्रथमतः मगध से युद्ध होगा, यदि उसे रोकना है तो आप को भय की नीती का प्रयोग करना होगा ,
मेरी कूटनीति के अनुसार राजन यह है की
आप स्वयं ही गुप्त रूप से उस यवन आक्रांता की सेना में सम्मलित हो कर उसके छमताओ का आकलन करे साथ ही विशाल मगध साम्राज्य एवं उत्तरापथ
के उभरते हुए स्वयं के नविन मयूर राज्य व महाबली
पराक्रमी योद्धा चन्द्र मयूर के युद्ध नीति
पराक्रम का व्यापक वर्णन करे ताकि उनमे भय व्याप्त हो जाये, यह आप के लिए स्वर्ण अवसर
है की समस्त भारत वर्ष में आपने पराक्रम से परिचय करवाने का,
और यह भय की नीति देश विदेश के
सभी छत्रपों को आप के राज्य की पताका के निचे आने को विवश कर देगी,
यदि आप इस कार्य में सफल रहे
तो अलकक्षेद्र व् उसस्की सेना को वापस लौटने हेतु विवश होना पड़ेगा आप को जन धन की हानि
नहीं होगी साथ ही उसके पास लौटने हेतु एक मात्र समुद्र मार्ग ही होगा, क्यों की जिन
स्थल मार्गो से वह आया है उन राज्यों के नागरिक आपने राज्य की रक्छा हेतु उद्दत हो
बैठे है ऐसे में उसे नागरिक युद्ध का सामना करना होगा अतः उसके पास लौटने हेतु एक मात्र
समुद्र मार्ग ही सुरक्छित होगा .
चाणक्य पुनः नीतियुक्त होकर बोले-
हे महान शिष्य आर्य चन्द्र मयूर आप को राजा
घोषित न करने का कारण यह है की अभी जिस राज्य
के आप स्वामी है वह आर्यव्रत का एक छोटे भूभाग
में आता है राजा होने हेतु इस नवगठित राज्य में आप के शाशन नीति कार्यक्रम सभी नागरिको
के ज्ञान में होना चाहिए साथ ही नागरिको द्वारा स्वेक्छा से पालन होना चाहिए अतः अभी तक आप एक मात्र
मेरे द्रिष्टी में योद्धा ही है
इसके साथ ही आप राजा होने की
आयु को प्राप्त नहीं किये है आप के आयु पूर्ण
होने में एक वर्षा ऋतू व् षष्ठ (6)माह शेष है तत्पश्चात आप को राज्य का राजा घोषित
किया जायेगा।
चन्द्रगुप्त मयूर विनम्र होते हुए गर्व से बोले-
महान आचार्य चाणक्य हम क्षमा प्रार्थी है.
आप की कूटनीति को हम समझ न सके, आचार्य हमे आप की नीति को फलित करने हेतु आज्ञा प्रदान
करे, और आशीर्वचन दे की हम सफल हो के लौटे।
चाणक्य पुनः नीतियुक्त होकर बोले-
राज्य निष्ठा व् नागरिक हित में किये जाने वाले कार्यों के लिए एक राजा को किसी आज्ञा
की आवश्यकता नहीं होती महाराज चन्द्रगुप्त मयूर ………….विजयीभव.
तक्षशिला नगर के विशाल क्रीड़ा
प्रांगण में युद्ध कला प्रदर्शन की क्रीड़ा यवन सम्राट एलेक्सेंडर के सम्मान में हो
रही थी जिसमे की तक्षिला नरेश उनके सेनाधिपति
अन्य तक्षशिला प्रमुख गणमान्य तथा एलेक्सेंडर
उसके जनरल सेल्युकश आदि उचे आसनो पे बैठे क्रीड़ा का आनंद ले रहे थे
एक बलिष्ठ यवन सैनिक अपने हाथ में खड्ग लिए तक्षशिला के एक योद्धा
से युद्धा क्रीड़ा में लगा हुआ था कुछ पलो
के युद्ध क्रीड़ा के बाद तक्षशिला का योद्धा यवन योद्धा के समक्ष धराशाही हो गया,
यवन सैनिक- अट्टहस करते हुए.......... होफ.. और संख्या
में आओ
एलेक्सेंडर उसके जनरल सेल्युकश
आदि अपने सैनिक के युद्ध कौसल की प्रसंसा करते हुए तक्षशिला नरेश से बोले क्या आप को
लगता है नहीं की अलेक्जेंडर की सेना बिना किसी
सहायता के भारत के पूर्वी सीमा तक यूनान की पताका नहीं फहरा सकेगी
तक्षशिला नरेश- महान वीर आप विश्व
विजेता है आधा संसार आप के पैरो के निचे है
निः संदेह आप सफल होगे।
यवन सैनिक- अट्टहस करते हुए पुनः बोला आओ आओ मेरे तलवार का सामना करो, है किसी में
बाहुबल है? ……………।यवन योद्धा के आमंत्रण से पुरे क्रीडांगन में सन्नाटा। ……तभी तक्षशिला
के दो उच्च पदस्त सैनिक आवेश में आपने स्थान से खड़े हुए और तक्षशिला के सैन्याधिपति
के ओर देख कर मौन आदेश मांगा किन्तु तक्षशिला सैन्याधिपति के नेत्रों के संकेत मात्र से ही वे
समझ गए की आज्ञा नहीं है यवन सैनिक के आपमानपूर्ण कथनो का प्रतिउत्तर न दे सकने के
अपमान से वयथित वे दोनों शीश झुका कर बैठ गए………..
किन्तु यह क्या एक तेज विद्युत
की चमक हुई और एक भारतीय नवयुवक जय महाकाल
का उदघोष करते हुए दर्शक दीर्घा से कूद के
यवन सैनिक के समक्ष आ गया उस खडग की चमक
तेज विद्युत की चमक जैसी। ...............सभी जन सामान्य का ध्यान नवयुवक की ओर। ............. जनता के मध्य
विचार होने लगा की यह नवयुवक अपनी मृत्यु के
निकट जा पंहुचा है जबकि तक्षशिला नरेश थोड़े
कुपित और असमंजस की स्थिति में सैन्याधिपति के ओर देखा और सैन्याधिपति की स्थिति किंकर्तव्य
विमूढ़ जैसी.
तभी दर्शक दीर्घा में बैठा एक
तक्षशिलन सैनिक ने उस नवयुवक को पहचानते हुए
धीरे से बोला- अरे यह तो चन्द्रा (चन्द्रगुप्त मयूर) है यह तो अभी कुछ महीने पूर्व
ही सेना में आया है ……………..किन्तु यह नाम पुरे दर्शक दीर्घा में आग की तरह फ़ैल गया
……….. तक्षशिलन
नागरिको का देशप्रेम जागा और वे सभी दर्शक उस युवक के उत्साह वर्धन के लिए चन्द्रा
चन्द्रा का नारा देनेलगे
यवन सैनिक- बालक
तू मेरे एक प्रहार का सामना न करसकेगा और भयंकर घाव लगसकते है जोकी जीवन के केलिए घातक
हो सकते है…………. जाओ बालक हम तुम्हारी इस उदंडता को क्षमा करते है
चन्द्र गुप्त - मेरी आयु अवस्था का विचार न करो यवन आक्रांता……….
हम तुम्हे अपना नाम बताये देते है वोह इसलिए
की जबतक जीवित रहो स्मरण रहे…………. हमारा नाम चन्द्र गुप्त मयूर है और हम तुम्हे वचन देते है की तुम सभी को
जीवित छोड़ देंगे केवल ऐसे घाव तुम्हारे शरीर पर बनायेगे जो सदैव तुम्हे हमारा स्मरण
दिलाये यदि तुम लोग हमारी राष्ट्र की सीमा से प्रस्थान न कर गए अतिशीघ्र अन्यथा तुम सभी को यमलोक में भेजने की व्यवस्था हमारा ये खडग करेगा.
यवन सैनिक क्रुद्ध हो कर आवेश में बोला- मुर्ख बालक
तू अवश्य ही दण्डित करने योग्य है.......... यह ले मेरा प्रहार सावधान…… किन्तु यवन सैनिक के दो प्रहारों
को चन्द्र मयूर द्वारा सफलता पूर्वक निष्क्रिय करदिया गया और तीसरा प्रहार चन्द्र गुप्त
द्वारा किया गया जिसको रोकने के लिए यवन सैनिक ने आपने तलवार का उपयोग किया और उसकी
तलवार दो खंड में होगयी
और हाथो से छूट गयी । ………… जनता उत्साह और आश्चर्य के मारे झूम के शोर मचाना आरम्भ
करदिया……….. एलेक्सेंडर उसके जनरल सेल्युकश आदि के मुख पर भी आश्चर्य व् क्रोध के भाव
दिखाई देने लगे.
चन्द्र गुप्त ने उस यवन सैनिक
के मुख पर आपने खडग के नोक से हलके से अर्ध चन्द्र का चिन्ह बनादिया और बोला- क्या और कोई यवन आक्रांता की सेना में योग्य है
जो मेरे समक्ष आएगा
इसी प्रकार दो यवन योद्धा, तीन,
पांच, सब पराजित
……….किन्तु घोर आश्चर्य सभी की तलवार दो खंड
में होगयी और तलवारो
के दो खंड हो जाने को ले कर सभी आश्चर्य में थे की इस भारतीय नवयुवक का खड्ग किस धातु
का बना है। ……अंततः सैल्युकस् की ओर अलेक्जेंडर ने देखा और सैल्युकस् अपने सैनिको को
आदेश दिया की इस भारतीय योद्धा को पकड़ के अलेक्जेंडर के सामने लाया जाये
किन्तु कोई भी यवन सैनिक चन्द्र
गुप्त के समक्ष आये तो चन्द्र गुप्त आपने खडग
के प्रहार से उनकी तलवारो के टुकड़े कर दे यवन सैनिको में आश्चर्य व् भय व्याप्त हो
गया और यवन सैनिको का घेरा तोड़ते हुए चन्द्र गुप्त क्रीडांगन के मुख्य द्वार के ऊपर चढ़ कर
अलेक्जेंडर से कहा - हे अलकक्षेन्द्र
तुम एक आक्रन्ता हो तुम्हारे व् राष्ट्र द्रोही आम्भीराज के गणों गुप्तचरों ने समस्त
भारत भूमि में तुम्हारे विजय का दुष्प्रचार कर रखा है वो हमे ज्ञात है , हम केवल तुम्हे
एक चेतावनी देने भर आये थे की तुम्हारा भारत
भूमि के और अंदर आने का प्रयास हमारे रहते सफल न होगा और हम तुम्हे व् तुम्हारी सेना
को यमलोक में पंहुचा देंगे, तथापि अभी भी समय है तुम चेत
जाओ एक मेरे जैसे भारतीय योद्धा का पराक्रम तुम देख कर अवश्य ही भली भांति ज्ञान होगया होगा की भारत विजित करना कठिन हैं
नहीं अपितु असम्भव है, क्यों की तुम्हारे राष्ट्र में युद्धकला, नीति व् अस्त्र शस्त्र की आधुनिक विधा
ज्ञान में सर्वथा हमारे राष्ट्र से बहुत ही पीछे हो, महाराज पौरष के साथ युद्ध में
तुम्हे अवश्य ही ज्ञात हो गया होगा की भारतीयों
के साथ युद्ध करना स्वयं के मृत्यु को निमंत्रण देना, तुम्हे अवश्य ही आश्चर्य हुआ
होगा की तुम्हारे योद्धाओ के खडग मेरे एक प्रहार मात्र से दो खंड हो गए तो जान लो की
यह खडग मगध की भूमि से निकाले
गए विशेष अयस्क को उच्च रासायनिक अभिक्रिया से अति योग्य विशेषज्ञ द्वारा
निर्मित किया गया है तथा वैदिक मंत्रो द्वारा अभिमंत्रित भी किया गया
है इस प्रकार के अयस्क इस्पात पुरे संसार में कही भी उपलब्ध नहीं है
यदि तुम्हे हमारी सलाह माननी है तोह अपने राज्य को वापस चले जाओ अन्यथा याम लोक के द्वार तुम्हारे लिए खुले है
प्लूटार्क के अनुसार
संभवतः आम्भी के अन्य राज्यों के नियुक्तसैनिको ने विद्रोह कर दिया था सिकंदर की सहायता की सहायता न करने के लिए और पोरस के साथ युद्ध में हुए यवन सेना के महा विनाश से सिकंदर के सैनिको ने आगे जाने से माना कर दिया था
यदि तुम्हे हमारी सलाह माननी है तोह अपने राज्य को वापस चले जाओ अन्यथा याम लोक के द्वार तुम्हारे लिए खुले है
प्लूटार्क के अनुसार
संभवतः आम्भी के अन्य राज्यों के नियुक्तसैनिको ने विद्रोह कर दिया था सिकंदर की सहायता की सहायता न करने के लिए और पोरस के साथ युद्ध में हुए यवन सेना के महा विनाश से सिकंदर के सैनिको ने आगे जाने से माना कर दिया था
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें